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"It was a wonderful experience interacting with you and appreciate the way you have planned and executed the whole publication process within the agreed timelines.”
Subrat SaurabhAuthor of Kuch Woh Palशेर के लिए माँस, गाय के लिए घाँस, पक्षी के लिए उड़ना, मछली के लिए तैरना उनकी आवश्यकता है और उनको जो चाहिये वो सब प्राकृतिक है और इतने में वे संतुष्ट हैं।
मनुष्य के पास भी शरीर है मगर शरीर की सारी जरूरतें पूरी हो भी जाएं तो भी वह चैन नहीं पाता है। क्यों? क्योंकि मनुष्य की असली जरूरत कुछ और ही है और वह इतनी प्यारी है कि उसके लिए कई भगतसिंह हँसते-हँसते फाँसी चड़ जाते हैं, जीसस सूली चड़ जाते हैं, सुकरात और मीराबाई जैसे लोग जहर का प्याला पी जाते हैं, बुद्ध और महावीर महल छोड़ जाते हैं। उसे मैं बेपरवाही कहता हूँ, जो प्रेम और आजादी के साथ आती है मगर बोध के बिना ना प्रेम हो सकता है और ना आजादी।
जब मनुष्य को बोध नहीं होता है कि वह कौन है? उसे क्या चाहिये? और जो चाहिये वह कैसे मिलेगा? तब वह अज्ञानवश; शरीर, संस्कार, प्रकृति, देश, काल, वातावरण और समाज के प्रभाववश उठी कामनाओं को ही अपनी जरूरत समझ लेता है और जीवनभर दर-दर भटकता रहता है, मगर कहीं भी चैन नहीं पाता है। क्यों? क्योंकि पानी का काम तो केवल पानी ही कर सकता है। भोजन का काम तो भोजन ही कर सकता है। वायु का काम वायु ही करेगी।
उसी प्रकार प्रेम, आजादी, मुक्ति, संतुष्टि, बोध और आनंद की जरूरत को कोई अन्य वस्तु कैसे पूरा कर सकती है। मगर अज्ञानवश मनुष्य इन्हें वस्तुओं, धन, पद-प्रतिष्ठा, भोग, स्त्री-पुरुष, सफलताओं जैसी चीजों में खोजता है।
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अचिंत्य
अचिंत्य’ को आप एक ऐसे व्यक्ति के रूप में देख सकते हैं जो किसी भी तरह की पहचान से चिपकने को ही हर तरह की हिंसा, दुख और बेचैनी का कारण समझते हैं। क्योंकि पहचानें ही मनुष्य को सीमित करती हैं और जहाँ भेद नहीं हैं वहाँ भी भेद खड़े कर देती हैं जिसके परिणामस्वरूप ही अनेक तरह से हिंसा, दुख और शोषण होते है।
जीवन को लेकर उनकी समझ, जीवन को और जगत को देखने का उनका ढंग; हर तरह के भेद, शोषण और हिंसा से मुक्त करता है। उनकी बातें सुनकर और समझकर जीवन में बोध, प्रेम, करुणा, सरलता और सहजता आती है।
उन्हें आप एक नौजवान, बेपरवाह और जागरूक समाज सुधारक की तरह देख सकते हैं।
वे सोशल मीडिया के उपलब्ध अलग-अलग माध्यमों से (@स्वयं से सत्य तक) समाज और जीवन के अनेक मुद्दों पर बोलते हैं। जैसे समाज में फैले अंधविश्वास और अज्ञान पर, वे महिलाओं और विधार्थियों के लिए बोलते हैं, पशुओं और प्रकृति पर हो रही हिंसा और क्रूरता पर बोलते हैं, वे शुद्ध शाकाहार को बढ़ावा देते हैं।
वे अध्यात्म को एक ऐसी शिक्षा की तरह देखते हैं जो मनुष्य को स्वयं से परिचित करवाती है और होशपूर्वक जीवन जीना सिखाते है। इसके लिए वे अपने चैनल (स्वयं से सत्य तक) के माध्यम से अध्यात्म और जीवन से संबंधित अनेक सवालों पर वीडियो डालते हैं और भगवद्गीता, कबीर साहब के दोहे, अष्टावक्र गीता, ध्यान, आत्मज्ञान, जलवायु परिवर्तन, शिक्षा और संबंधों जैसे अनेक विषयों पर बोलते हैं।
हम यह नहीं कह सकते हैं कि जब मैं पूर्ण ज्ञानी हो जाऊंगा अथवा जब मेरी व्यक्तिगत समस्याएं और ज़रूरतें खत्म हो जाएंगी उसके बाद कोई सार्थक काम करूंगा/करूंगी। जितना जाना है उतना जियो, उचित और आवश्यक कर्म करो, बाक़ी फिर जीवन सिखाता रहता है। यदि कुछ जानने-समझने से हमारे जीवन में दुःख कम होता है, भय, चिन्ता, बेचैनी, बंधन और अपूर्णता कम होती है, व्यर्थ की भागदौड़ रुकती है और जीवन में प्रेम, करूणा, शान्ति, सहजता और सरलता आती है; तो यह हमारा धर्म हो जाता है कि हम वह 'समझ' अन्य जीवों तक पहुंचाए जिससे कि वे भी अपने दुख, बंधनों, भय और अज्ञान से मुक्त हो सकें।
कुछ इसी तरह की बातें अचिंत्य को समझ आने लगी थीं और भविष्य के परिणामों की बहुत चिन्ता किए बिना उन्होंने स्वयं को पूरी तरह उस काम के प्रति समर्पित कर दिया जो उनकी अधिकतम समझ से आज बहुत ज़रूरी है। बोध, प्रेम, करूणा, आज़ादी और बेपरवाही उनका केंद्र है और यही उनके कर्म के आधार हैं।
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