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Subrat SaurabhAuthor of Kuch Woh Pal“ घूँघट में चाँद “ एक हिंदी काव्य संग्रह है। जिसमें जय कृष्ण कुमार जी की कुल 108 कविताएं संकलित हैं। यह काव्य संग्रह विभिन्न रंगों के फूलों से सुसज्जित एक मनोरम गुलदस्ता की तरह है। गुलदस्ता इसलिए कहता हूँ कि इस नवांकुर कवि की दुनिया में पारिवारिक रिश्तों का मोल है, दोस्ती की कद्र है, राष्ट्र के प्रति प्रेम है, मानवता के प्रति जुड़ाव है, मातृभूमि के प्रति स्नेह और समर्पण है, पर्यावरण के प्रति जागृति है, प्रकृति संकट के प्रति जागरण है, भाषा के प्रति मोह है और बिखरते इंसानियत के प्रति करुणा है। साथ ही रिश्ते - नाते के रोज - रोज बनते - बिगड़ते समीकरणों का लेखा - जोखा है। हृदय की मानवीय संवेदनाएं अगर आपको भी छूती हैं, तो बेशक यह काव्य संग्रह आपके लिए ही है। जिसमें जीवन के हरेक रंग, हरेक पक्ष और हरेक आयाम को बड़े ही सलीके से उल्लेखित करने की पुरजोर कोशिश की गई है। जिसमें काव्य - रस की सुरम्य, करुणामयी और गरिमामयी प्रवाह है। इसमें आज की आपाधापी और भागती - दौड़ती जिंदगी में बनते - बिगड़ते रिश्तों की परवाह है। मानवीय करुण - क्रन्दन की आह है। वादों - इरादों की निबाह है। यह ताज़ातरीन काव्य संग्रह एक शीतल, सौम्य, पारदर्शी झील की मानिंद है, जिसकी सरस भावनामृत में आप स्नान कर सकते हैं। इसकी उमंग - तरंगों में गोते लगा सकते हैं। “ घूँघट में चाँद “ संग्रह का नाम देखने पर एक नजर में यह संग्रह रोमांटिक कविताओं का संकलन लगे पर ऐसा नहीं है। कवि किसी वाद, विचारधारा या किसी इज्म से नहीं जुड़कर बल्कि अपने काव्य के विषयों में बिंदु से सिंधु का भाव रखते हैं।
जय कृष्ण कुमार
“ घूँघट में चाँद “ काव्य संग्रह के रचनाकार जय कृष्ण कुमार एक नवोदित रचनाकार हैं। अपनी कविताओं में रचनाकार ने देश, काल और परिस्थिति को जिस तरह दर्ज किया है; यह उनके जागरूक रचनाकार होने का परिचायक है। ईश्वर के प्रति आसक्ति रखने वाला यह रचनाकार कई परंपराओं के रूढ़ हो जाने पर विरोध करता है। वहीं सामाजिक विद्रूपताओं का भी प्रतिकार करने में संकोच नहीं करता है। वे मानवीय मूल्यों के प्रति गहरा लगाव रखते हैं। कवि जय कृष्ण कुमार किसी वाद, विचारधारा या किसी इज्म से नहीं जुड़कर बल्कि अपने काव्य के विषयों में बिंदु से सिंधु का भाव रखते हैं। सच तो यह है कि कवि जय कृष्ण कुमार किसी अवधारणा की परिधि में घिरे हुए नहीं हैं। काव्य उनके लिए अनवरत एक रचना प्रक्रिया है। उनकी कविताओं में संवेदना है। मूल्य है। विचार है। भावनाएं हैं। गाँव है। गाँव की दुश्वारियां हैं और शहर की चतुराईयां भी हैं। और सबसे बड़ी बात यह है कि उनकी कविताओं में ताजगी है। जय कृष्ण कुमार हिंदी के प्रति अतिशय जुड़ाव रखते हैं। उनकी भाषा दुरूह तो नहीं है पर उनकी रचनाओं में हिंदी, उर्दू और लोक भाषा ( अंगिका ) की त्रिवेणी प्रवाहित है। पेशे से शिक्षक जय कृष्ण कुमार मनोविज्ञान की अच्छी समझ रखते हैं, जिसका प्रभाव सहज ही उनकी कविताओं में परिलक्षित होती है। वे पूर्व में विभिन्न वेब पोर्टल, पत्र - पत्रिकाओं एवं डिजिटल न्यूज़ चैनलों के लिए लेखन, संपादन एवं साक्षात्कार लेने का कार्य करते रहे हैं, जिससे सामाजिक तानों - बानों को समझने की उनकी दृष्टि मार्मिक और गंभीर है। वे ना सिर्फ अपनी बात बहुत ही साफगोई से रखते हैं बल्कि आसपास घटित हो रही घटनाओं पर पैनी नजर भी रखते हैं। अंत में यही कहा जा सकता है कि जय कृष्ण कुमार एक चेतना संपन्न कवि हैं। भाषा पर उनकी अच्छी पकड़ है। उनकी भाषा सरल, सीधी और आडंबरहीन है। उनकी कविताओं में चिंता नहीं बल्कि चिंतन का विस्तार है। धूमिल के शब्दों में “ कविता भाषा में आदमी होने की तमीज है। “ और जय कृष्ण कुमार ने इस तमीज को बनाए रखा है।
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