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Subrat SaurabhAuthor of Kuch Woh Palकला का उद्देश्य जीवन के लिये है, वह कोई उद्देश्यहीन साधना नहीं हैं। यह भारत के दर्शन व मूल्यबोध की सुंदर अभिव्यक्ति है जिसे कलाकार ने अनुभव किया और जो वह दर्शक तक पहुंचाना चाहता है। भारत में धर्म की पृष्ठभूमि में स्थापत्य व कला का उदय हुआ है। भारतीय कला का अध्ययन मंदिरों के माध्यम से किया जाता है किन्तु भारतीय कला के अवशेषों का केवल बाह्यः अध्ययन ही पर्याप्त नहीं है उनके भीतरी अर्थ का भी विवेचन आवश्यक है। भारतीय कला की आत्मा उसके अलंकरण प्रतीकों में है जो न केवल देखने वाले को प्रसन्न करती है अपितु एक पावन उद्देश्य की पूर्ति कर सुख-समृद्धि की प्राप्ति व अमंगल से रक्षा भी करती है। भारत में स्थापत्य कला भी है, विज्ञान भी, पुरातत्व भी तकनीक भी और दर्शन भी। भारत में हम कला, दर्शन और विज्ञान के बीच कोई सीमारेखा नहीं खींच सकते। स्थापत्य कला का अध्ययन करते समय हमें शास्त्रीय (ग्रंथ) व उपलब्ध प्रमाण (स्थापत्य अवशेष) दोनो पक्षों को लेकर चलना होगा। अतः हमें उपलब्ध पुरास्मारकों का अध्ययन शास्त्रों के साथ करना होगा। इसी क्रम में राजस्थान के हाडोती क्षेत्र में विभिन्न कालों में बने समृद्ध, स्थापत्य कला व शिल्प के प्रमाण मंदिरों का सर्वेक्षण एवं अध्ययन करने का प्रयास किया है। स्थापत्य के प्रतिनिधि ये सभी मंदिर,मूर्तियाँ, शिलालेख भारतीय कला एवं ज्ञान की धरोहर है। इनकी सुरक्षा करना हमारा कर्त्तव्य है। पुस्तक हाड़ोती अँचल की कला विरासत की सुरक्षा और इसे प्रतिष्ठित स्थान दिलाने की दिशा में एक सामयिक कदम होगी ऐसी मेरी आस्था ही नहीं बल्कि पूर्ण विश्वास है।
डॅा. सुषमा आहूजा
विगत कई वर्षों से हाड़ोती की विरासत को सहेजने में प्रयासरत और इसे भारतीय एवं विश्व मानचित्र पर एक विशेष पहचान दिलाने के लिए सक्रिय डॉ सुषमा आहूजा जानकी देवी बजाज वाणिज्य कन्या महाविद्यालय कोटा से सेवानिवृत्त प्राचार्य हैं। कोटा विश्वविद्यालय के हेरीटेज टूरिज्म म्यूजियोलॉजी विभाग की भी आप समन्वयक रही हैं । इस विभाग की स्थापना में आपकी महत्वपूर्ण भूमिका रही है। आपने एम ए. इतिहास एवं पीएच डी हाडोती की मंदिर स्थापत्य कला पर की। 38 वर्षों का अनुभव आपके साथ रहा है, आप इंडियन हिस्ट्री एंड कल्चर सोसाइटी की आजीवन सदस्य हैं एवं कई अंतरराष्ट्रीय एवं राष्ट्रीय सेमिनार में हाडोती की कला और संस्कृति पर अपने शोध पत्र प्रस्तुत कर प्रशंसा प्राप्त की है। शोध के साथ-साथ जागरूकता कार्यक्रम भी आपके द्वारा आयोजित किए जाते रहे हैं। कोटा विश्वविद्यालय के हेरिटेज विभाग, भारतीय सांस्कृतिक निधि, कोटा संग्रहालय, ETV राजस्थान के सौजन्य से भी आपने विरासत के प्रति जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किए, हेरिटेज वॉक में भी आपने अपनी सहभागिता निभाई. चंबल एडवेंचर फेस्टिवल में प्रशासन के साथ विरासत पर आधारित प्रदर्शनी का भी आयोजन किया । आपकी वेबसाइट www.theheritagetourism.com से भी देश विदेश के लोग जुड़े हैं। आपको प्रशासन एवं स्वयं सेवी संगठनों के द्वारा विभिन्न अवसरों पर सम्मानित किया गया है। प्रिंट मीडिया एवं इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ने आपसे विशेष जानकारी के लिए संपर्क किया है। आपकी एक पुस्तक हाल ही में प्रकाशित हुई जिसमें मंदिरो में महिला मूर्तियों का विश्लेषण किया गया है (Satyam Shivam Sundaram Female figurine in Temple Art ) । प्रस्तुत है आपकी दूसरी पुस्तक जो क्षेत्र की कला की समृद्द विरासत एवं संरक्षण का संदेश देती है।
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