Share this book with your friends

Krashak Kanaya / कृषक कन्या

Author Name: Gautam Nandawat | Format: Paperback | Genre : Families & Relationships | Other Details

गौतम नंदावत पेशे से चार्टर्ड अकाऊण्टेंट (सी.ए.) है एवं वर्तमान में औरंगाबाद (महाराष्ट्र) में प्रॅक्टिस करते है । १९७६ में बी. कॉम. की डिग्री जोधपुर से हासिल करने के बाद वे सी.ए. की ट्रेनिंग एवं शिक्षा हेतु मुंबई गये । तत्पश्चात् १९८२ में बतौर एक कंपनी के वित्तीय व्यवस्थापक पद पर उन्होंने औरंगाबाद कूच किया एवं १८ वर्ष कंपनियों में सेवा देने के बाद अपनी सी. ए. की प्रॅक्टिस आरंभ की। वह लायन्स क्लब, कलासागर आदि सामाजिक संस्थाओं से जुड़े है एवं साथ ही साथ 'चेंबर ऑफ मराठवाडा इंडस्ट्रीज ॲण्ड ॲग्रीकल्चर' (सीएमआईए) के अध्यक्ष एवं औरंगाबाद सी. ए. ब्रांच के चेअरमन भी रहे। शुरू की शिक्षा हिन्दी माध्यम में हुई एवं पिताजी भी हिन्दी, संस्कृत एवं प्राकृत अध्यापक थे, अत: बचपन से ही हिन्दी साहित्य में गहरी रूचि रही। स्कूली जीवन में हिंदी साहित्य का व्यापक अध्ययन किया अत: साहित्य लेखन में भी उनकी रूचि बचपन से ही रही । 'कृषक कन्या' खण्डकाव्य प्रकाशन ऐसी ही रूचि का एक परिणाम है। यह खण्डकाव्य वित्तीय अभाव में समाज के सम्मुख १९७४ में तो प्रस्तुत नहीं कर पाए पर करीब ४८ वर्षों बाद अपनी रूचि को पुनर्जीवित कर अब उसे प्रस्तुत कर रह हैं। उनकी दो कृतियां ‘खोई लेखनी' एवं 'माँ की मृत्यु' का लोकार्पण हो चुका हैं एवं अन्य कृति 'रिक्त सीमंत' भी जल्दी ही प्रकाशित होने वाली है।

Read More...
Paperback
Paperback 200

Inclusive of all taxes

Delivery

Item is available at

Enter pincode for exact delivery dates

Also Available On

गौतम नंदावत

गौतम नंदावत पेशे से चार्टर्ड अकाऊण्टेंट (सी.ए.) है एवं वर्तमान में औरंगाबाद (महाराष्ट्र) में प्रॅक्टिस करते है । १९७६ में बी. कॉम. की डिग्री जोधपुर से हासिल करने के बाद वे सी.ए. की ट्रेनिंग एवं शिक्षा हेतु मुंबई गये । तत्पश्चात् १९८२ में बतौर एक कंपनी के वित्तीय व्यवस्थापक पद पर उन्होंने औरंगाबाद कूच किया एवं १८ वर्ष कंपनियों में सेवा देने के बाद अपनी सी. ए. की प्रॅक्टिस आरंभ की। वह लायन्स क्लब, कलासागर आदि सामाजिक संस्थाओं से जुड़े है एवं साथ ही साथ 'चेंबर ऑफ मराठवाडा इंडस्ट्रीज ॲण्ड ॲग्रीकल्चर' (सीएमआईए) के अध्यक्ष एवं औरंगाबाद सी. ए. ब्रांच के चेअरमन भी रहे। शुरू की शिक्षा हिन्दी माध्यम में हुई एवं पिताजी भी हिन्दी, संस्कृत एवं प्राकृत अध्यापक थे, अत: बचपन से ही हिन्दी साहित्य में गहरी रूचि रही। स्कूली जीवन में हिंदी साहित्य का व्यापक अध्ययन किया अत: साहित्य लेखन में भी उनकी रूचि बचपन से ही रही । 'कृषक कन्या' खण्डकाव्य प्रकाशन ऐसी ही रूचि का एक परिणाम है। यह खण्डकाव्य वित्तीय अभाव में समाज के सम्मुख १९७४ में तो प्रस्तुत नहीं कर पाए पर करीब ४८ वर्षों बाद अपनी रूचि को पुनर्जीवित कर अब उसे प्रस्तुत कर रह हैं। उनकी दो कृतियां ‘खोई लेखनी' एवं 'माँ की मृत्यु' का लोकार्पण हो चुका हैं एवं अन्य कृति 'रिक्त सीमंत' भी जल्दी ही प्रकाशित होने वाली है।

Read More...

Achievements