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Subrat SaurabhAuthor of Kuch Woh Palवसुंधरा के प्राँगण में चारों ओर मची थी हाहाकार ,चीत्कार ,और इधर रजनी की बढती रफ़्तार के साथ बढ़ रहा था धरा-नीरद का मातृ-पुत्र संवाद | तिमिर को चीरते क्रंदन से विह्वल होते आर्तनाद के स्वर उर को अशांत कर दूर क्षितिज को गूँजायमान कर रहा था और संवेदना के अनगिनत तीर उन्हें बींधने के लिए काफी थे ,उन अलसाये मेघके लिए ,जो गिरि शिखर पर यूँ खड़ा था ,मानो मदमस्त मयगल के देह पर चींटियाँ अटखेलियाँ कर रहा हो |
कुमार विक्रमादित्य
सच ही किसी ने कहा है अगर आपको प्रकृति की सुन्दरता का रसपान करना है तो साहित्य के शरण में जाओ शायद प्राकृतिक विज्ञान की सेवा करते-करते “कुमार विक्रमादित्य” ने प्रकृति के साहित्य का भी रसपान करना सीख लिया | काव्य की प्रेरणा उन्हें अपने शिक्षा काल में नहीं मिली, लेकिन बच्चों के बीच रहते-रहते दो वर्षों की कठिन परिश्रम ने उनसे प्रकृति के इस सुन्दर सम्बन्ध को लिखा ही लिया | रचनाकार हिंदी के कहानी संग्रह के साथ मैथिली के पाँच लघु कथा (अनुवाद) और विभिन्न राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं में अपनी रचना प्रकाशित करवा चुके हैं | बी. एच्. यू. एवम् जामिया मिल्लिया इस्लामिया से शिक्षा ग्रहण करने के दरमियान जो कुछ इन्होंने सीखा उसका रसपान सहरसा,बिहार जैसे सुदूर क्षेत्र में खुद भी करते हैं और अपने सानिध्य में रहने वाले बच्चों को भी निरंतर करा रहे हैं, अस्तु |
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