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Peele phool / पीले फूल Kaner Ke/ कनेर के

Author Name: ASHOK KUMAR MISHRA | Format: Paperback | Genre : Literature & Fiction | Other Details

यह उपन्यास मनोवैज्ञानिक ढंग से प्यार के उस अछूते शिखर को छूता है, जहां पर दो ‘सोलमेट्स’ का प्यार भरा सफर शुरू होता है। यह कटु सत्य है कि हम सभी के जीवन में सोलमेट्स होते हैं और मिलते हैं। उनका निःस्वार्थ प्यार रिश्तों के बंधन से परे महज मानसिक सुख देने तक ही सिमित होता है। उनके मिलने बिछड़ने का ये सिलसिला मोक्ष की दहलीज तक चलता रहता है। उनको ना तो जन्म–जन्मान्तर की अड़चनें रोक पाती हैं और ना ही समय सीमा या उम्र का बंधन उन्हे बांध पाता है। फिर भी हमारे समाज की पुरातन सोच के बोझ तले पिस जाना कईयों की नियति बन जाती है। उम्र के आख़िरी पड़ाव पर जब जिस्म साथ ना दे और ना ही जीने का जज्बा बचा हो, ऐसे में कोई सोलमेट फिर से जीने की ख़्वाहिश को ज़िंदा कर दे तो क्या होना चाहिए? ‘फेस ब्लाइंडनेस’ की बिमारी से संघर्षरत मुख्य पात्र प्रवीण कुमार को भी जीवन के आख़िरी मोड़ पर किसी के प्यार की सुगंध का एहसास हो जाता है। फिर उसे क्या करना चाहिए? यह उपन्यास ऐसे अनेकों प्रश्नों को अपने में समाहित किये है। रिश्तों और भावनाओं के भंवर में फंसे सभी पात्रों के माध्यम से मिलनेवाले मार्मिक जवाब, हमारे दिल में एहसासों की टीस उकेरते हैं।

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अशोक कुमार मिश्रा

लेखक के पिछले उपन्यासों ने निर्विवाद रूप से साबित कर दिया है कि मनोवैज्ञानिक लेखन में इनकी लेखनी बेमिसाल है। ये अब तक चार हिंदी और एक अंग्रेज़ी उपन्यास लिख चुके हैं। कई प्रसिद्ध लेखकों ने इनकी रचनाओं की बहुत सराहना की है। इनके रचनाओं की उत्तमता का सबसे बड़ा प्रमाण यह है कि इनकी कृतियां फिल्मकारों की भी पसंदीदा कृति बन चुकी हैं। तभी तो ‘अल्पना’ उपन्यास पर ‘फेयर इन लव’ नामक हिन्दी फिल्म बन चुकी है और अन्य तीन कृतियों पर फिल्म निर्माण अतिशीघ्र प्रारंभ होने जा रहा है। इनकी इस सराहनीय सफलता के पीछे इनका समर्पण और रचनात्मक क्षेत्र में सालों से कार्यरत रहने का अनुभव, दोनों को श्रेय जाता है। ये विगत 20 वर्षों से टेलीविज़न के क्षेत्र में बतौर क्रियेटिव डायरेक्टर कार्यरत हैं। समाज को पुरातनपंथी सोच के समंदर से निकालकर सुधार के शिखर तक ले जाने का जो संकल्प सालों पहले किया था, उस उद्देश्य पुर्ति हेतु साहित्य सेवा में समर्पित है – ‘पीले फूल कनेर के’।

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