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Subrat SaurabhAuthor of Kuch Woh Palक्या आपको यह नहीं लगता है कि प्रत्येक व्यक्ति की जिंदगी एक बेमिशाल और पठनीय कहानी है और हर कहानी में किरदारों की अद्वितीय जिंदगी और भूमिका है ? जब जब आप कहानी के किरदार की तस्वीर को कल्पना के पटल से उभरकर स्पष्ट होते हुए देखते है ; तो प्रतीत होता है की यह तो कल ही की आस-पड़ोस की घटना का नायक है ..
आज ऐसे ही किरदार "राजेश कुमार गिरि " (स्वयं लेखक ) की दर्दनाक , पीड़ादायक संघर्ष और रहस्यों से भरी हुई रोमांचक परन्तु सत्या पर आधारित कहानी आपको प्रस्तुत कर रहा हूँ !
इस कहानी में प्रेरणा भी है , तो दर्द भी ! पीड़ा अगर है तो , प्रेम भी ! धोखा गर मिला , तो सहारा भी साथ-साथ चला आया बेख़ौफ़ होकर ! कही निराशा हाथ लगी तो कही सफलता भी चरण चूमने में पीछे ना रही ! कुछ अपनों और अपनी प्रिय चीजों को खोया तो बहुत कुछ पाया भी ! यही तो जिंदगी की वास्तविकता है !
जिंदगी के उन दिनों की बात करेंगे जो आज भी कई लोगों के लिए एक रहस्य बना हुआ है ! कैसे खाली जेब , सिर्फ एक जोड़ी कपडे में बिहार के एक छोटे से गाँव से भारत की राजधानी नई दिल्ली पहुँच गया और लिख डाली शुन्य से सफलता की अद्भुत और बेमिशाल कहानी !
22 सालों से सपने को पूरा करते-करते ;किस तरह एक साधारण शिक्षक धीरे-धीरे असाधारण व्यक्तित्व का मालिक बन गया ! और किस तरह मिल गयी राजेश के किस्मत की रेखा !
राजेश कुमार गिरि
राजेश कुमार गिरि -द प्रैक्टिकल सक्सेस कोच ; रामनगर पश्चिम चंपारण, बिहार के सोनखर नामक एक सुदूर गाँव के निवासी स्वर्गीय श्री कांति गिरि "गिरि बाबा" के सबसे छोटे पुत्र हैं। उनके पिता एक गरीब दुकानदार थे जो किरयाने के सामानों के साथ- साथ पान,सुपारी और तंबाकू बेचते थे। लेकिन उन्हें जानने वाले लोग उनकी सादगी और ईमानदारी के लिए सम्मान और प्यार करते थे। गिरि बाबा का सपना था कि उनके पुत्रों को उच्च शिक्षा और सरकारी नौकरी मिले। लेकिन दुर्भाग्य से उनमें से किसी ने भी उनका सपना पूरा नहीं किया। गरीबी के बावजूद; गिरि बाबा अपने सबसे छोटे बेटे राजेश को निजी(प्राइवेट) स्कूल "सरस्वती बाल विद्यालय" में शिक्षित करने के लिए अपनी मेहनत की कमाई खर्च की।
1999 में वे नई दिल्ली पहुंचे; अपने उज्ज्वल भविष्य की तलाश में भारत की राजधानी और अपने भाग्य के खिलाफ संघर्ष करना शुरू कर दिया। एक बार में सफल होना कोई आसान काम नहीं था ; जब रिश्तेदार भी उन्हें दिल्ली में नहीं देखना चाहते थे। लेकिन मेहनत , शिक्षा और कलम की ताकत ने उन्हें एक नया इतिहास लिखने में मदद की !
दरिद्रता के दामन से निकलकर अशिक्षित परिवेश के कीचड़ में कमल की तरह खिलकर अपनी मेहनत और पिता के लाढ-प्यार से नई कीर्तिमान को बनाने के लिए आतुर राजेश , बचपन से ही कुछ कर दिखाने की जज्बे के साथ पल-बढ़ रहा था ! राजधानी दिल्ली में उसे कुछ कर दिखाने का अवसर मिल गया ! फिर क्या वह लिखने लगा संघर्ष से भरी हुई सफलता की कहानी ! पर सब कुछ इतना आसान नहीं था !
राजेश कुमार गिरि आज किसी परिचय के मोहताज नहीं है ! अगर आपके पास अगर स्मार्ट -फ़ोन और इंटरनेट है तब गूगल सर्च में राजेश कुमार गिरि को सर्च कर उनके विषय में जानकारी ले सकते है !
1999 से लेकर 2022 तक की सफ़र को जानने के लिए उनकी किताब - राजेश तेरी जिंदगी -एक रहस्य जरुर पढे !
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