सबसे कठिन काम होता है अपनी कृति के लिये अपने हृदय के उद्गार लिखना। एक उलझन सी आ खड़ी होती है कि कहाँ से आरम्भ करूँ?
सौभाग्य और संयोग से आज गुरु पूर्णिमा का दिन है , प्रभु कृपा से मौसम भी सुहाना है, हृदय स्वयं ही लेखनी लेकर तैयार हो गया उद्गार लिखने को।
सर्वप्रथम मेरे माता पिता के प्रति हृदय तल से नतमस्तक हूँ जिन्होंने उँगली पकड़ कर चलना सिखाने से लेकर जीने की कला तक बहुत कुछ सिखाया l
मेरी पाँचवीं कक्षा तक हिंदी अध्यापिका रहीं श्रीमती सुंदरी चावला ,मेरी प्रथम सफलता का श्रेय उनको जाता है ,उनके चिरगमन के बाद उनकी बेटी श्रीमती सरिता मेंदीरत्ता ने मेरा सदा उत्साहवर्द्धन किया।