तारीक़ 13 साल का था। वह मुंबई के धारावी झुग्गी झोपड़ियों में रहने वाले कई बच्चों में से एक था। यहां कोई भी शिक्षा के प्रति आकर्षित नहीं दिखता था, क्योंकि उनको सबसे पहले अपने भूखे पेट की जुगाड़ करनी पड़ती थी। तारीक़ भी उन असहाय बच्चों में से एक था और उसे भी उन बच्चों के साथ खड़ा हो जाना पड़ा, जो दिन भर काम- काज करते और रात में जाकर आराम। लेकिन उसमें शिक्षा पाने की एक अलग ही भूख थी। जिसका अक्सर उसके साथ रहने वाले झुग्गी झोपड़ी के लोग मजाक उड़ाया करते थे।