लेखन :- लेखन भी एक कला है। लिखने का मजा ही कुछ और है। जब भी आप लिखें, अपनी भावनाओं को लिखें। किसी प्रतियोगिता में भाग लेने के लिए कभी न लिखें। लिखो लेकिन दूसरों को देखकर नहीं, जो खुद पर बीतता है उसे लिखो। दिल कुछ कह रहा है और हम कुछ और लिख रहे हैं, ऐसा कभी मत करना। ये तो बस मन के भाव हैं जो अपने आप दूर हो जाते हैं और कलम आखिर उठ जाती है। इसे जरूर लिखें क्योंकि यह आपको गलत रास्ते पर जाने से रोकता है। इधर-उधर बात करना बंद कर देता है। यह हमें नकारात्मकता से दूर रखता है। लिखने से लिखने की कला तो बढ़ती ही है साथ ही हमारे शब्दों में भी निखार आता है। लेखन से हमारी मानसिकता का विकास होता है। जितना अधिक आप लिखते हैं, उतने ही नए विचार विकसित होते हैं। नई सोच और नए शब्दों का विकास होता है। जिस दिन तुम नहीं लिखते हो तो ऐसा लगता है जैसे आज हमने कुछ खो दिया है। मैं रोज लिखता हूं क्योंकि ऐसा क्या लिखूं जो सबके दिल को छू जाए, वहीं मेरे प्रयास मेरे शब्दों को निखारते हैं और लिखने की कला को बनाए रखते हैं। (डॉ श्वेता सिंह)