'अंतर्मन से कभी कभी' लिखने वाले महाशय कभी ये ध्यान में रख के इसे लिखना चालू नहीं किये थे की छपवा देंगे. ये किताब के हर एक शब्द भावनाओ से फूटे है. कुछ आधी रात लिखे गए. कुछ को चलती बस में लिखा. कुछ को अधूरे पन ने लिखवा दिया. कुछ सोचते सोचते लिखर गए. चुकी जब ख्याल अति तीव्र होके मन को परेशान करने लगते थे और छलकने लगते थे, इसे गिरते गिरते मोबाइल की स्क्रीन में समेट लिया गया. इसीलिए लिखने की अवधि दो साल होगी. इन्हे लिखते वक़्त जिन शब्दों को ढाल बनाया गया और उनकी मदद मांगी गयी, इसे छपवाने की तरकीब के दौरान उनमे ' ा' की मात्रा की भी फेर बदल नहीं की गयी ताकि पढ़ने वाले का मन लिखते वक़्त लिखने वाले के मन से मिले. किताब में थोड़ी कुछ कविताएं है और कुछ चित्रण अमूर्त लेखन के है.