व्याकरण के समस्त ग्रन्थों में अष्टाध्यायी का मूर्धन्य स्थान है। इसीके कारण पाणिनि जी की कीर्तिपताका अद्यावधि फहरा रही है। इस अष्टाध्यायी में आठ अध्याय हैं और एक-एक अध्याय में चार-चार पाद हैं।
कुल मिलाकर बत्तीस पाद होते हैं। अष्टाध्यायी में लगभग ३९९३ सूत्र हैं। अत्यल्प सूत्र में अत्यधिक अर्थों को भर देना पाणिनि और उनकी प्रतिभा का अलौकिक चमत्कार है।
यही छोटा सूत्र स्वल्पाकार को छोड़कर बाद में इतना विराट् रूपधारण कर लेता है कि जिसमें समस्त संस्कृत वाङ्मय ओतप्रोत दिखाई देने लगते हैं। पाणिनि जी की प्रखर प्रतिभा प्रत्येक सूत्र से मुखरित होकर पाठकों को अष्टाध्यायी जैसा ग्रन्थ रटने की शिक्षा दे रही है।
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