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Aur Vo Sheeshee Mein Kaid Ho Gaya / और वो शीशी में कैद हो गया Pratibhaashaalee Bevade Kee Premakatha

Author Name: Rajesh Kumar Giri | Format: Paperback | Genre : Families & Relationships | Other Details

कहानियाँ कुछ तो कहती है , क्योंकि लेखक या लेखिका अपनी गहन एवं अथाह कल्पनाओ के समुन्द्र से विचारो और भावनाओ की मोती चुन-चुनकर वाक्यों में पिरोते है ! तब जाकर कही वास्तविक परिस्थितियो का जीवन्त तस्वीर बनता है ...

सहज प्रेरणादायक व्यक्तित्व, अद्वितीय चरित्र और जीवन संघर्ष के साथ कल्पनाओ की मेल ही लेखनी को जन्म देती है !

थक-सा गया था वह , सामजिक, जातिय और आर्थिक विषमता से लड़ते-लड़ते ! उसे तो बस तनिक ठहराव की चाहत थी ! उसके लिए जिंदगी की तपती -सुलगती धूप की जलन से मुक्ति के खातिर , सुकून की छाँव के कुछ पल भी बेहिसाब थे, पर निर्दयी किस्मत ...

आज एक ऐसी प्रेम-कथा प्रस्तुत कर रहा हूँ , जिसका नायक प्रतिभाशाली व्यक्तित्व का मालिक होने के बाद भी अपनी जिंदगी में सपनो को ना जी पाया और नाहीं सफलता के शीर्ष पर टीक पाया ! जीवन , सामाज और परिस्थितियो में तालमेल बनाने के प्रयासों से हारकर धैर्य खोने लगा !

एक रूमानी प्रेमी , गणित और भौतिकी का बेहतरीन शिक्षक और कहानीकार नशे में डूब अपने वजूद को मिटाने लगा और धीरे -धीरे शीशी में कैद हो गया !

"और वो शीशी में कैद हो गया " कहानी एक अद्भुत चित्रण है , जिसमे मानव भावनाओ , सपनो और संघर्ष के साथ -साथ शिखर से गिर कर शून्य की स्थिति में कैसे एक सम्मानित और प्रतिभाशाली व्यक्ति भी तिरस्कार का पत्र बन जाता है !

प्रेम विवाह की चाहत में तड़प है तो विरह की पीड़ा भी है !
स्वप्न का पर्दा भी है तो हकीकत का सामना भी है !
सम्मान की भोर गर है तो तिरस्कार की साँझ भी है ! 

कहानी को घटना क्रम के हिसाब से सामंजस्य बनाकर कई अध्याओ में बाँट दिया ! जिससे की कहानी रोचक लगे और स्पष्ट भाव व्यक्त हो सके !

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राजेश कुमार गिरि

कहने को तो राजेश कुमार गिरि एक गणित के जाने-माने शिक्षक और कोच है लेकिन लिखने और अपने विचारों को प्रसाद की तरह बांटने की प्रवृति शुरू से ही रही है ! राजेश कोई कवि , कहानीकार या साहित्यकार नहीं है, परन्तु अपनी जिंदगी की सच्चाईयों से उन सभी युवाओ का मार्गदर्शन करना चाहते है जिनके अपने सपने है ! जिन्हें पूरा किया जा सकता है, दूसरों की गलतियों से सीखकर !

राजेश वर्षों से अंग्रेजी भाषा में आलेख लिखते रहे है ! परन्तु अब वे अपनी मातृभाषा के लिए जीवन अर्पित करने का फैसला किया है !

"और वो शीशी में कैद हो गया " ही इसी प्रयास के कड़ी की दूसरी पुस्तक है ! 

हिंदी भाषा और साहित्य भारतवर्ष की अतुलनीय धरोहर है जिसे एक दिन या वर्ष में कत्तई नहीं सीख सकते ! लेखन कला तो बिल्कुल ही नहीं ! पाठकों की खरी-खोटी , सुधार की शिक्षा और पीठ पर थपकी और सीखने और लिखने को प्रेरित करेगी !

वैसे तो राजेश कुमार गिरि , आज किसी परिचय के मोहताज़ नहीं है ! गूगल सर्च में नाम डालने मात्र से कुंडली निकल आती है !

फिर भी थोडी जानकारी यहाँ भी उपलब्ध है :-

दरिद्रता के दामन से निकलकर अशिक्षित परिवेश के कीचड़ में कमल की तरह खिलकर अपनी मेहनत और पिता के लाढ-प्यार से नई कीर्तिमान को बनाने के लिए आतुर राजेश , बचपन से ही कुछ कर दिखाने की जज्बे के साथ पल-बढ़ रहा थे ! राजधानी दिल्ली में उन्हें कुछ कर दिखाने का अवसर मिल गया ! फिर क्या वह लिखने लगे संघर्ष से भरी हुई सफलता की कहानी ! पर सब कुछ इतना आसान नहीं था !

संघर्ष की पूरी कहानी पढ़े - सर्दी की वो मनहूस रात

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