भर्तृहरि
उद्यमी का द्वंद
जीवन हमें बार-बार ऐसे मोड़ पर खड़ा करता है, जहाँ चुनाव करना सबसे कठिन काम बन जाता है। चुने हुए रास्ते हमें मंज़िल तक ले जाते हैं, लेकिन न चुने गए रास्तों की गूँज मन में जीवनभर “काश...” बनकर रह जाती है।
यह पुस्तक मनुष्य के उन्हीं द्वंदों और निर्णयों की यात्रा है जहाँ आज़ादी जिम्मेदारी लेकर आती है और चुनाव जीवन की दिशा तय करता है। इसमें बताया गया है कि कैसे प्राचीन काल से लेकर आधुनिक समय तक राजा और आम आदमी, दोनों ही एक जैसी समस्याओं से जूझते आए हैं, दैविक और भौतिक।
पूर्वजों ने इन समस्याओं का समाधान अध्यात्म में खोजा, हमने विज्ञान में। लेकिन परिणाम लगभग समान ही रहे। यही पुस्तक का मूल है समस्याएं बदलती हैं, पर समाधान की तलाश सदैव एक जैसी रहती है।
गहन शोध, इतिहास, साहित्य, लोककथाओं और व्यक्तिगत अनुभवों से बुनी गई यह कृति जीवन को देखने का नया दृष्टिकोण देती है। इसमें पाठक न केवल अपने अंतर्द्वंदों का आईना देख पाएंगे, बल्कि समस्याओं से जूझने की एक सकारात्मक राह भी खोजेंगे।
यह पुस्तक किसी एक "अंतिम सत्य" का दावा नहीं करती। हर पाठक अपनी सोच, अपने अनुभव और अपनी मान्यताओं के अनुसार इसमें अपने उत्तर पाएगा।
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