आज जब चारो और नजर उठा कर देखते है तो हमे आशा से अधिक निराशा से भरी दुनिया नजर आती है, विशेष तौर पर हमारा युवा वर्ग। इस के पीछे एक दूसरे से आगे निकल जाने की हौड़, वर्तमान युग का परिवेश एवं हमारी परवरिश जिम्मेदार है। निराशा के हर पहलू में मानव की ईश्वर प्रदत्त क्षमताओं की विस्मृति नजर आती है। हम जो है और जो हो सकते है, यदि उसके बीच की दूरी का आंकलन करें तो हम हैरान होंगे कि ये दूरी शायद पृथ्वी से सूरज की दूरी से भी ज्यादा है