आज कल भारतीय राजनीति में जो शब्द सर्वाधिक प्रयोग होता है वह है ब्राह्मणवाद। यह ब्राह्मणवाद रूपी शब्द कहाँ से आया, यह कैसे भारतीय सामाजिक ताने बाने में रच बस गया यह एक शोध का विषय है। आज के परिपेक्ष में इस पर काफी कार्य करने की आवश्यकता है जिससे समाज में छाई अनेक भ्रांतियों को दूर किया जा सके।
भारत के पौराणिक काल में जब वर्ण आश्रम चरम पर था और जातिवाद का उदय नहीं हुआ था तब कोई भी शोषक अथवा शोषित नहीं था। लोग अपनी योग्यता के आधार पर कोई भी वर्ण धरण कर सकते थे अर्थात शिक्षा और पवित्रता के आधार पर कोई भी व्यक्ति ब्राह्मण की पदवी प्राप्त कर ब्राह्मण बनकर ब्राह्मण का कार्य अर्थात पूजा पाठ, गुरुकुल में आचार्य का कार्य कर सकता था।
कालांतर में कुछ कुटिल व्यक्तियों ने समाज में ऊंचा स्थान पाकर उसे न छोडने की नीयत से व अपनी आगामी पीड़ियों के लिए वह ऊंचे स्थान आरक्षित करने के उद्देश्य से ब्राह्मण वर्ग ने इसे जन्म के आधार पर ला दिया। अपने बचाव के लिए साम, दाम, दंड, भेद की नीति अपनाकर क्षत्रिय व वैश्यों को भी अपने साथ मिला लिया और समझा बुझाकर जन्म के आधार पर उनके स्थान निश्चित कर दिये। तब इन तीनों वर्गों ने सेवा भावी समाज को एक चौथा वर्ग "शूद्र" के रूप में स्थापित करके शोषण की प्रथा को जन्म दिया। प्रारम्भिक काल में यही ब्राह्मणवाद था।
आइये आज हम भारत की आज़ादी की ७४वी वर्षगांठ पर स्वतन्त्रता दिवस के मौके पर यह प्रण लें कि इस जातिवादी, शोषणकारी व्यवस्था रूपी ब्राह्मणवाद के समूल नाश हेतु एकजुट होकर कार्य करें जिससे भारत पुनः सौने की चिड़िया के रूप में विश्व में प्रसिद्धि पाकर अपनी चमक कायम कर सके और विश्व गुरु का हमारा सपना साकार हो सके।
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