प्रस्तुत उपन्यास में भी जहां एक ओर गांव की भोली भाली मासूम मूरतों की तस्वीर झलकती है, वहीं मुंबई की फिल्मी दुनिया की काली सच्चाई, नवांगतुको का संघर्ष और उनकी उपलब्धियों का आख्यान भी देखने को मिलता है।
कुमार विकल प्रसिद्ध कहानीकार, उपन्यासकार और हिंदी-भोजपुरी फिल्मों के लेखक-निर्देशक हैं। ये विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं के संपादक भी रह चुके हैं। इनकी अब तक तीन पुस्तकें प्रकाशित और आधा दर्जन से अधिक फिल्में प्रदर्शित हो चुकी हैं।
इनकी कहानियों में ग्रामीण परिवेश की जीवन शैली, समाज के निचले पायदान के लोगों की हाहाकारी गाथा और नारी के अंतर्मन की गहराइयां मिलती हैं।