आज भी पवित्र क़ुरआन के बारे में कुछ लोगों का भ्रम व्याप्त है कि यह क़ुरआन मोहम्मद के समय का नहीं है और इसमें परिवर्तन कर दिया गया है। इसी प्रकार से कुछ लोगों का भ्रम है कि शिया की क़ुरआन और सुन्नी कुरआन अलग-अलग है।
और यहां तक कुछ लोग कहते हैं कि क़ुरआन पहले 40 पारों में था आप 30 पैरों में सिमट कर रह गया है लेकिन यह मात्र भ्रम है क्योंकि मैं खुद शिया की मस्जिद जाकर क़ुरआन को पढ़ा और देखा तो उसमें एक शब्द का भी कोई परिवर्तन नहीं है । और इसी प्रकार से जितनी पुरानी पांडुलिपियों हैं यदि उसमें कोई परिवर्तन या कमी होती तो पांडुलिपियों से साबित हो जाता क्योंकि पांडुलिपिया पढ़ने योग्य है। ऐसा नहीं है कि प्राचीन पांडुलिपियों क़ुरआन की सब पढ़ी जा चुकी है और सभी को जानकारी है। यदि कोई परिवर्तन होता तो सबसे पहले अरबी जानने वाले अरब के लोग ही इसका विरोध करते और वहीं से प्रचार होता कि क़ुरआन में परिवर्तन हुआ है लेकिन यह कुछ लोगों का मात्र भ्रम है। क्योंकि ऐसा तो रिसर्च करने वाले लोग भी नहीं कहते, यह मात्र कुछ फिरका परस्त लोग ही कहते हैं।
बहरहाल इस पुस्तक को खुद आप लोग पढ़े और जानकारी करें कि क्या ऐसा सोचना सच है ? क्योंकि क़ुरआन का पूरा इतिहास सभी के सामने है और यदि आपको कुछ ऐसा महसूस होता है कि परिवर्तन हुआ है तो कृपया जरूर अवगत काराये, मैं आपकी जानकारी को साझा करने का प्रयास करूंगा ।
धन्यवाद