अपनी बात
समय और इस समय से जुड़ी सारी की सारी सच्चाई महज इत्तफाक नहीं है कि हम इसका इंतजार करें और तलाशे इन समय के बीच से अपनी अपनी मंजिल। आज जो हमारे बीच समय फैला है, इस फैलाव में बहुत सारी विडंबनाओं के बीच जीने की तलाश में विषम स्थिति पैदा हो गई है। हमारे चारो ओर एक भागमभाग की जिंदगी दौड़ रही है, भौतिक सुख के पीछे यह भीड़ अपनों को धक्के देकर बस दौड़ रही है और सही मंजिल का पता नहीं है। इस काल में सब बेगाने हो गए हैं, हमारे बीच से नैतिकता, करुणा, ममता, मानवता, धर्य, संवेदना आदि क्षण प्रतिक्षण खंडित हो रहें हैं। ऐसे विकट समय में बहुत जरूरी हो जाता है कि समय के मापदंड पर हमारी सारी मानवीयता और इनसे जुड़े सभी सवालों से न सिर्फ जुझा जाए बल्कि इनके हल के तलाश में जरूरी कदम उठाया जाए।
मेरी इस चौथी पुस्तक 'दृश्यों के आईने' पर उन्हीं सवालों के खोज में उन सारे आयामों को पिरोया गया है जहां से हम खंडित होने को विवश हैं और सही दिशा की खोज कर उन्हें बहाल करने की कोशिश की गई है. अब यह पुस्तक आपके हाथों में है, आपकी राय की मुझे प्रतीक्षा रहेगी कि हम कितने कामयाब हो पाए हैं।
(हस्ताक्षर)
मोतीलाल दास
डोंगाकाटा, नंदपुर
मनोहरपुर – 833 104
पश्चिम सिंहभूम, झारखंड