'एक स्वप्नद्रष्टा का रोमांटिसिज़्म'-युवा कवि सौमित्र की लम्बी कविता है।
हिन्दी में लम्बी कविता की गिनती करें तो निराला की 'राम की शक्तिपूजा', त्रिलोचन की 'नगई महरा', मुक्तिबोध की 'अँधेरे में', धूमिल की 'पटकथा', सौमित्र मोहन की 'लुकमान अली' की याद आती है। विष्णु खरे, लीलाधर जगूड़ी, चन्द्रकान्त देवताले, मानबहादुर सिंह और भगवत रावत के यहाँ भी वह मिलेगी; लेकिन इनके बाद के कवियों में लम्बी कविता की रिक्तता हाथ लगती है।
सौमित्र की इस लम्बी कविता को काव्य परम्परा की अगली सफ़ के रूप में ले सकते हैं। कविता के हृदय में प्रवेश करें तो ज्ञात होता है कि कवि आज के समय को लेकर काफ़ी चिंतित है-बेचैन है। आज के समय की चिंताएं क्या हैं ?-नस्ली हिंसा, अलगाव, आज़ादी का ह्रास, लूट, धर्म के नाम पर खून-ख़राबा, वर्चस्व की लड़ाई-ये ऐसे ज्वलंत मुद्दे हैं जो हिंदुस्तान को ही नहीं वरन पूरे विश्व को अपनी गिरफ़्त में लिए हुए हैं जिनकी आग से आज़ादी, मानवीयता, प्यार-मुहब्बत-जो इंसान का नैसर्गिक गुण है, छीज रहा है, ख़त्म हो रहा है।
सौमित्र एक स्वप्नद्रष्टा की तरह जिनके पास खोने कुछ नहीं है और पाने को संसार है-समाज, विश्व के लिए अमन-चैन-आज़ादी की चाह रखते हैं। वे छोटे छोटे बिम्बों-दृश्यों के मार्फ़त आज के जीवन की त्रासदी को रूप देते हैं। वे जीवन को रोमानी निगाह से नहीं देखते, अपितु यथार्थ की जलती राह के बीच जीवन की वह सच्चाई निरूपित करते हैं जिसमें इब्राहिम लिंकन, जॉन हस, और गाँधी जैसे महात्माओं को आज़ादी, एकता, प्यार के लिए अपनी क़ुरबानी देनी पड़ी।
सीधे सरल शब्दों में रची यह कविता मानव की क्रूरता का रक्तरंजित इतिहास प्रस्तुत करती है, जिसके तल में निराशा के बाबजूद आस्था, आशा की ऐसी स्फुर्लिंग है, जो आदमी को उठ खड़े होने को विवश करती है।
एक कवि में मरियम, लिंकन और गाँधी कायांतरित हो जायें, यह कवि की जीवन-सलंग्नता का एक नमूना है –
"रुक जाओ दोस्तो
ठहर जाओ
चलो !
मेरे साथ करो तबादला-ए-ख़्याल
इंसानियत की बाबत -"
तबादला-ए-ख़्याल में वह शक्ति है जो इंसान को इंसान से जोड़ती है। सौमित्र, वास्तव में, इसी ख़्वाहिश के रचनाकार हैं-समूची मानवता के पैरोकार। एक ऐसे समय के स्वप्नद्रष्टा जिसमें इंसान अपने कुदरती रूप में साँस ले सके।
यह लम्बी कविता इसी स्वप्न की जीती-जागती तस्वीर है।
- हरि भटनागर
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