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Subrat SaurabhAuthor of Kuch Woh Palसौमित्र पिछले ढाई दशकों से कविताएँ लिख रहे हैं और समकालीन हिंदी कविता की दुनिया में एक प्रमुख व्यक्तित्व के रूप में पहचाने जाते हैं। 150 से अधिक कविताओं और कई कहानियों को उनके नाम पर श्रेय दिया जाता है, और उनमें से कई प्रमुख साहित्यRead More...
सौमित्र पिछले ढाई दशकों से कविताएँ लिख रहे हैं और समकालीन हिंदी कविता की दुनिया में एक प्रमुख व्यक्तित्व के रूप में पहचाने जाते हैं। 150 से अधिक कविताओं और कई कहानियों को उनके नाम पर श्रेय दिया जाता है, और उनमें से कई प्रमुख साहित्यिक पत्रिकाओं, संकलनों और समाचार पत्रों में प्रकाशित हुई हैं।
सौमित्र का जन्म उत्तर प्रदेश के ऐतिहासिक शहर मेरठ में हुआ था। भारत से स्नातक की पढ़ाई पूरी करने के बाद, सौमित्र केमिकल इंजीनियरिंग में पीएच-डी करने के लिए शिकागो चले गए। सौमित्र ने कविताएँ लिखना जारी रखा और उन्हें भारत भेजा जहाँ उनकी कविताएँ नियमित रूप से छपती रहीं।
कई साहित्यिक कार्यों के बीच, सौमित्र का पहला कविता संग्रह, ‘मित्र,’ प्रकाशित हुआ। यह संग्रह समीक्षकों द्वारा प्रशंसित किया गया था, और उन्हें 2008 में भारतीय ज्ञानपीठ द्वारा प्रतिष्ठित भारतीय ज्ञानपीठ नवलेखन पुरस्कार मिला। 'मित्र' ने अच्छी प्रशंसा हासिल की और इसे अमेरिकी विश्वविद्यालयों और वाशिंगटन डीसी- में स्थित लाइब्रेरी ऑफ कांग्रेस में शामिल किया गया है। 'मित्र' का अंग्रेज़ी अनुवाद प्रसिद्ध मीडियाकर्मी और लेखक धीरज सिंह ने किया और जो ‘I like to wash my face with seawater,’ शीर्षक से 2020 में प्रकाशित हुआ है। एक लंबी कविता, ‘एक स्वप्नद्रष्टा का रोमांटिसिज़्म’ रचना समय से 2011 में प्रकाशित हुई। भारत के प्रसिद्ध वॉयस-ओवर कलाकार हरीश भिमानी ने सौमित्र की तीन काव्य पुस्तकों को अपनी आवाज़ दी । प्रकाशन पथ पर कई पुस्तकों में बंगाल की वैष्णव परम्परा की पृष्ठभूमि पर आधारित एक उपन्यास, ‘अमर चित्र,’ शामिल है।
स्नातकोत्तर शिक्षा के बाद सौमित्र ने अपना अधिकांश जीवन भारत से बाहर गुजारा। वर्तमान में, वे मध्य-पूर्व एशिया के एक प्रमुख विश्वविद्यालय में वैज्ञानिक के रूप में काम करते हुए कार्बन फुटप्रिंट में कमी और जलवायु परिवर्तन शमन के क्षेत्र में अनुसंधान कर रहे हैं ।
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Achievements
In a post-truth and fake news-saturated world where narratives compete for a place in the minds of people, Dreams of a Psychopath is a plea for a saner world. It is a plea directed at those whose conscience is in deep slumber or those who have turned their backs on the world as long as their lives are safe and secure. The poet takes on the role of an agent provocateur who wants to scream loudly into the ears of those who have shut themselves to the injustices
In a post-truth and fake news-saturated world where narratives compete for a place in the minds of people, Dreams of a Psychopath is a plea for a saner world. It is a plea directed at those whose conscience is in deep slumber or those who have turned their backs on the world as long as their lives are safe and secure. The poet takes on the role of an agent provocateur who wants to scream loudly into the ears of those who have shut themselves to the injustices of the world. And in his mission he is both a dreamer and a psychopath who wants to right the wrongs of the past and rewrite history not from the victor’s point of view but with the blood and sweat of the vanquished.
In a post-truth and fake news-saturated world where narratives compete for a place in the minds of people, Dreams of a Psychopath is a plea for a saner world. It is a plea directed at those whose conscience is in deep slumber or those who have turned their backs on the world as long as their lives are safe and secure. The poet takes on the role of an agent provocateur who wants to scream loudly into the ears of those who have shut themselves to the injustices
In a post-truth and fake news-saturated world where narratives compete for a place in the minds of people, Dreams of a Psychopath is a plea for a saner world. It is a plea directed at those whose conscience is in deep slumber or those who have turned their backs on the world as long as their lives are safe and secure. The poet takes on the role of an agent provocateur who wants to scream loudly into the ears of those who have shut themselves to the injustices of the world. And in his mission he is both a dreamer and a psychopath who wants to right the wrongs of the past and rewrite history not from the victor’s point of view but with the blood and sweat of the vanquished.
सौमित्र की कविताओं का मैं पाठक रहा हूँ -वह भी लम्बे समय से। कह सकते हैं कि मैंने सौमित्र की प्रारंभिक कविताएँ पढ़ी हैं और उनके क्रमिक विकास से परिचित हूँ । उसी आधार पर मैं यह कह रहा
सौमित्र की कविताओं का मैं पाठक रहा हूँ -वह भी लम्बे समय से। कह सकते हैं कि मैंने सौमित्र की प्रारंभिक कविताएँ पढ़ी हैं और उनके क्रमिक विकास से परिचित हूँ । उसी आधार पर मैं यह कह रहा हूँ कि सौमित्र मूलतः रिश्तों के कवि हैं। भाई-बहन, मौसी-माँ-पिता जैसे आत्मीय संबंधों को वे जीते हैं और इस बहाने समय की विडम्बना के बीच सबको याद करते हैं। इस याद में कवित्त की संरचना अपना रूप लेती है जिसमें दुःख है, पीड़ा है-पर हाहाकार रूप में नहीं। मौन रूप में जो गहनता होती है वह हाहाकार में ख़त्म हो जाती है। सौमित्र रिश्तों के साथ जगहों को खूब याद रखते हैं-एक मॉडल बना लेते हैं जैसे 'भोपाल कभी नहीं गया,' कविता में-फिर वे उसके मार्फ़त शहरों के साथ इंसान के अंदर पल-पल बदल रहे रिश्ते की अमूर्त जुगराफिया को जबान देते हैं। कह सकते हैं सौमित्र की कविताओं में स्थानीयता का भारी महत्त्व है। और कहा भी जाता है कि जो स्थानीय है वह अंततः पूरे विश्व-फ़लक की यात्रा का सामर्थ्य रखता है। सौमित्र अपने अग्रज कवियों में वीरेन डंगवाल की तरह हर विषय में कवित्त तलाश लेते है- कैंसर जैसा असाध्य रोग हो या विज्ञान की क्वांटम भौतिकी-उसमें काव्य रोशनी इस तरह डालते हैं कि उसमें प्राण-वायु की तरंगें फूटने लगती हैं। अपनी काव्य परम्परा के साथ, जीवन के बग़ल नहीं, वरन उसमें धँसकर चलने वाले कवि सौमित्र की कविता में सुख भी है, दुःख भी है, आशा भी है, निराशा भी, लेकिन पस्ती और शिकस्त से वे गुरेज़ रखते हैं। यही उनकी कविता की ताकत है।
-हरि भटनागर
सौमित्र का कविता-संग्रह 'मित्र' स्मृति के अन्तराल में गूँजती ऐसी पुकार है जिसमें सम्बोधन और सम्बन्ध घुलमिल गये हैं। सौमित्र के लिए समय एक बिम्बबहुला वीथिका है। इस वीथिका में आत
सौमित्र का कविता-संग्रह 'मित्र' स्मृति के अन्तराल में गूँजती ऐसी पुकार है जिसमें सम्बोधन और सम्बन्ध घुलमिल गये हैं। सौमित्र के लिए समय एक बिम्बबहुला वीथिका है। इस वीथिका में आते-जाते शब्द अर्थ की अनूठी दीप्ति से आप्लावित हो उठे हैं। 'चिड़िया' सौमित्र की बहुतेरी कविताओं का बीज शब्द है, जिससे उन्होंने जिजीविषा, विडम्बना और नियति के सूत्र उद्घाटित किये हैं। प्रत्यक्ष से मुठभेड़ करते सौमित्र अस्तित्व के कुछ प्रशान्त प्रश्नों को इस तरह खंगालते हैं कि सहसा व्यक्ति का अर्थ व्यापक हो उठता है। अपनी कविता में ठिठुरती आत्मा और धूसर संवेदना की पहचान सौमित्र कर सके हैं, यह बड़ी बात है।
'मित्र' की कविताओं की एक उल्लेखनीय विशेषता इनकी तरलता व सरलता है। कई बार ये इतनी आत्मीयता से खुलने लगती हैं कि कविताई सुगन्ध की तरह निर्भार लगने लगती हैं । भौतिक, वैचारिक एवं सांस्कृतिक विस्थापन का मौन हाहाकार भी यहाँ पढ़ा जा सकता है। इन सबके 'विचलित वृत्त' के बीच रिश्तों की वे इकाइयाँ हैं जिनसे जीवन बनता है। कहना होगा कि सौमित्र जीवन में गहराई तक डूबे हुए रचनाकार हैं।
समकालीन हिन्दी कविताओं के साथ इस कविता-संग्रह की परख करें तो स्पष्ट होगा कि यहाँ बौद्धिकता का अतिरिक्त आतंक नहीं है। सौमित्र में एक विरल विनम्रता है जो इन कविताओं के रूपाकार का निर्धारण भी करती है। सहज भाषा, शिल्पविहीनता की सीमा तक पहुंचा हुआ शिल्प और अनूठी अनौपचारिकता के चलते 'मित्र' की कविताएँ सम्प्रेषणीयता से समृद्ध हैं। भारतीय ज्ञानपीठ के नवलेखन पुरस्कार से सम्मानित 'मित्र' हिन्दी की युवा कविता में एक सार्थक हस्तक्षेप है।
Introducing Saumitra’s poetry to an English relishing readership is like reliving its flavor a few years ago in Hindi when these very poems caught the print eye of an eminent publisher, Bharatiya Gyanpith. Saumitra’s selection was not only published from there but also awarded the ‘Yuva Puruskar’ and these poems have been expertly translated by Dhiraj Singh who gives a Midas touch of his pen when moving from one language to another.
Introducing Saumitra’s poetry to an English relishing readership is like reliving its flavor a few years ago in Hindi when these very poems caught the print eye of an eminent publisher, Bharatiya Gyanpith. Saumitra’s selection was not only published from there but also awarded the ‘Yuva Puruskar’ and these poems have been expertly translated by Dhiraj Singh who gives a Midas touch of his pen when moving from one language to another.
Saumitra is, by profession an engineer and by passion, a poet. He has moved away from India, but his sensibility is filled with boyhood memories and tender moments of his youth. With an economy of words, he expresses himself in short verses that look like a map of his moods.
All aspects of nature find expression with Saumitra so much so that he emerges as a friend of live landscapes, changing skies and the smell of raw mangoes. He has a Wordsworthian involvement with nature and with the simple sweet voice of humanity.
The translation by Dhiraj Singh is equally sensitive and soulful, conveying the author’s creativity convincingly. To quote the very first poem-
‘Every tree
Calls out to her
But she chooses
Her tree and sits on it
She chooses and sits
And that is all
There is to it.’
At first sight these may appear to be single–focus expressions but page after page you come across sensitive lines like these you are bound to feel involved.
Poetry is not a sealed-off entity of nature alone. We live in an urban world and our concerns are city-bred. Then what impacts our young poet to focus on greener landscapes. Actually this appears to be Saumitra’s retort to the mechanized, mundane metro culture that leaves us myopic to personal pleasures and the bounty of nature.
- Mamta Kalia
'एक स्वप्नद्रष्टा का रोमांटिसिज़्म'-युवा कवि सौमित्र की लम्बी कविता है।
हिन्दी में लम्बी कविता की गिनती करें तो निराला की 'राम की शक्तिपूजा', त्रिलोचन की 'नगई महरा', मुक्तिबोध की
'एक स्वप्नद्रष्टा का रोमांटिसिज़्म'-युवा कवि सौमित्र की लम्बी कविता है।
हिन्दी में लम्बी कविता की गिनती करें तो निराला की 'राम की शक्तिपूजा', त्रिलोचन की 'नगई महरा', मुक्तिबोध की 'अँधेरे में', धूमिल की 'पटकथा', सौमित्र मोहन की 'लुकमान अली' की याद आती है। विष्णु खरे, लीलाधर जगूड़ी, चन्द्रकान्त देवताले, मानबहादुर सिंह और भगवत रावत के यहाँ भी वह मिलेगी; लेकिन इनके बाद के कवियों में लम्बी कविता की रिक्तता हाथ लगती है।
सौमित्र की इस लम्बी कविता को काव्य परम्परा की अगली सफ़ के रूप में ले सकते हैं। कविता के हृदय में प्रवेश करें तो ज्ञात होता है कि कवि आज के समय को लेकर काफ़ी चिंतित है-बेचैन है। आज के समय की चिंताएं क्या हैं ?-नस्ली हिंसा, अलगाव, आज़ादी का ह्रास, लूट, धर्म के नाम पर खून-ख़राबा, वर्चस्व की लड़ाई-ये ऐसे ज्वलंत मुद्दे हैं जो हिंदुस्तान को ही नहीं वरन पूरे विश्व को अपनी गिरफ़्त में लिए हुए हैं जिनकी आग से आज़ादी, मानवीयता, प्यार-मुहब्बत-जो इंसान का नैसर्गिक गुण है, छीज रहा है, ख़त्म हो रहा है।
सौमित्र एक स्वप्नद्रष्टा की तरह जिनके पास खोने कुछ नहीं है और पाने को संसार है-समाज, विश्व के लिए अमन-चैन-आज़ादी की चाह रखते हैं। वे छोटे छोटे बिम्बों-दृश्यों के मार्फ़त आज के जीवन की त्रासदी को रूप देते हैं। वे जीवन को रोमानी निगाह से नहीं देखते, अपितु यथार्थ की जलती राह के बीच जीवन की वह सच्चाई निरूपित करते हैं जिसमें इब्राहिम लिंकन, जॉन हस, और गाँधी जैसे महात्माओं को आज़ादी, एकता, प्यार के लिए अपनी क़ुरबानी देनी पड़ी।
सीधे सरल शब्दों में रची यह कविता मानव की क्रूरता का रक्तरंजित इतिहास प्रस्तुत करती है, जिसके तल में निराशा के बाबजूद आस्था, आशा की ऐसी स्फुर्लिंग है, जो आदमी को उठ खड़े होने को विवश करती है।
एक कवि में मरियम, लिंकन और गाँधी कायांतरित हो जायें, यह कवि की जीवन-सलंग्नता का एक नमूना है –
"रुक जाओ दोस्तो
ठहर जाओ
चलो !
मेरे साथ करो तबादला-ए-ख़्याल
इंसानियत की बाबत -"
तबादला-ए-ख़्याल में वह शक्ति है जो इंसान को इंसान से जोड़ती है। सौमित्र, वास्तव में, इसी ख़्वाहिश के रचनाकार हैं-समूची मानवता के पैरोकार। एक ऐसे समय के स्वप्नद्रष्टा जिसमें इंसान अपने कुदरती रूप में साँस ले सके।
यह लम्बी कविता इसी स्वप्न की जीती-जागती तस्वीर है।
- हरि भटनागर
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