सौमित्र का कविता-संग्रह 'मित्र' स्मृति के अन्तराल में गूँजती ऐसी पुकार है जिसमें सम्बोधन और सम्बन्ध घुलमिल गये हैं। सौमित्र के लिए समय एक बिम्बबहुला वीथिका है। इस वीथिका में आते-जाते शब्द अर्थ की अनूठी दीप्ति से आप्लावित हो उठे हैं। 'चिड़िया' सौमित्र की बहुतेरी कविताओं का बीज शब्द है, जिससे उन्होंने जिजीविषा, विडम्बना और नियति के सूत्र उद्घाटित किये हैं। प्रत्यक्ष से मुठभेड़ करते सौमित्र अस्तित्व के कुछ प्रशान्त प्रश्नों को इस तरह खंगालते हैं कि सहसा व्यक्ति का अर्थ व्यापक हो उठता है। अपनी कविता में ठिठुरती आत्मा और धूसर संवेदना की पहचान सौमित्र कर सके हैं, यह बड़ी बात है।
'मित्र' की कविताओं की एक उल्लेखनीय विशेषता इनकी तरलता व सरलता है। कई बार ये इतनी आत्मीयता से खुलने लगती हैं कि कविताई सुगन्ध की तरह निर्भार लगने लगती हैं । भौतिक, वैचारिक एवं सांस्कृतिक विस्थापन का मौन हाहाकार भी यहाँ पढ़ा जा सकता है। इन सबके 'विचलित वृत्त' के बीच रिश्तों की वे इकाइयाँ हैं जिनसे जीवन बनता है। कहना होगा कि सौमित्र जीवन में गहराई तक डूबे हुए रचनाकार हैं।
समकालीन हिन्दी कविताओं के साथ इस कविता-संग्रह की परख करें तो स्पष्ट होगा कि यहाँ बौद्धिकता का अतिरिक्त आतंक नहीं है। सौमित्र में एक विरल विनम्रता है जो इन कविताओं के रूपाकार का निर्धारण भी करती है। सहज भाषा, शिल्पविहीनता की सीमा तक पहुंचा हुआ शिल्प और अनूठी अनौपचारिकता के चलते 'मित्र' की कविताएँ सम्प्रेषणीयता से समृद्ध हैं। भारतीय ज्ञानपीठ के नवलेखन पुरस्कार से सम्मानित 'मित्र' हिन्दी की युवा कविता में एक सार्थक हस्तक्षेप है।
Sorry we are currently not available in your region. Alternatively you can purchase from our partners
Sorry we are currently not available in your region. Alternatively you can purchase from our partners