महामानव के इस संघर्ष ने अपने चार चार बच्चों की बलि देकर भी इस शोषण मुक्ति के इस संग्राम को जारी रखा। एक समय ऐसा भी आया जब घर पर इस महामानव के पुत्र की मृत्यु हो गयी और इस महामानव के पास उसके कफ़न के लिए भी पैसे नहीं थे, तो उनकी पत्नी रमाबाई ने अपनी फटी जीर्णशीर्ण धोती के एक टुकड़े को कफ़न का रूप देकर अपने लाडले के शव को सम्मान दिया और उसके क्रिया कर्म की व्यवस्था की।