फर्श से अर्श तक जाने का मकसद केवल ऊंचाइयों को छूना ही नहीं बल्कि हरेक परेशानियों को निगलते हुए उस अर्श को छू लेने से है, जो कि फर्श से कोसों दूर है।
मुश्किलें परेशानियां दुःख और तकलीफ तो हर मंज़िल की खूबसूरती हैं,बस उसी कांटों भरी खूबसूरत सी - मंज़िल को सबसे छिनकर अपना बनाना और हथियाना है। और उस अर्श की चोटी पर चढ़कर ही दम लेना है।
क्योंकि, किसी भी हालात में जाना है बस
फर्श से अर्श तक।