"क्या रे गजेंद्र, गधा जैसा शरीर होता जा रहा है और तू...।" अक्सर चलते- फिरते गांव के लोगों से सुनने को मिल जाता था उसे। वह चुपचाप असहाय की सी सूरत बना कर बड़ों की बात नजरअंदाज करके एक तरफ चल देता।
"बेटा अब तो कुछ काम-धाम कर ले। बैठे-बैठे तू कितनी रोटी-तरकारी तोड़ेगा?" अक्सर मां झल्ला जाती। आखिर वह करती भी तो क्या? अपनी बेबसी किसको बताती?