सकुनी किसी के लिए गलत होगा और हो सकता है किसी के लिए सही भी
नजर का फर्क है, किसी को जो गलत लगता है , वो किसी को सही भी।
अखबार के पन्नो को कोई सिर्फ पढता है और कोई सिर्फ उसपर सोता और खाता है
इस किताब समाज के अलग अलग पहलुओं को कविता के माध्यम से बताया गया है ।
इस किताब मे चीज़ो को अलग नजरिए से देखना और अलग ढंग से प्रस्तुत किया गया है
सिर्फ उस नजर से मत देखिये जैसे बाकी सारे लोग देख रहे है