कहानियां जो कई लाखों दिलों और घरों में बसी हुई हैं। वो मजबूरियां जिनसे वो लाचार हैं, कुछ ऐसे परिवारों की कहानियां हैं जिनसे हम सब आज तक अनजान रहे हैं, ना जाने कितनी ऐसी और कहानियां छुपी हैं उन गरीबों के पीछे, शायद अगर मैं लिख भी दूं तो ये अल्फाज़ और किताब भी कम पड़ जाएगी लिखने को, उनकी सहनशीलता को टटोलना आसान नहीं है।
ऐसी ही सच्चाई और लाचारी से भरी कुछ कहानियों का ज़िक्र इस किताब में किया गया है, इस किताब, "गूंज- एक सच" के माध्यम से उनकी आवाज़ को एक ज़रिया मिलेगा लोगो तक पहुंचाने का, जिससे अब तक सब अनजान थे। इसमें कुछ गरीब परिवारों की दास्तां है जिनकी आवाज़ को बोझ तले या अमीरी की तले दबा दिया जाता है, इसमें हिंदी देवनागरी लिपि का प्रयोग किया है और कुछ आम बोल चाल की भाषा भी सम्मिलित हैं, जिससे पाठकों को इस पुस्तक में प्रकाशित कहानियों के उद्देश्य से भली भांति अवगत कराया जा सके।
संकलनकर्ता ने पुस्तक के शीर्षक पर प्रकाश निम्नलिखित पंक्तियों द्वारा डाला है:
वो पानी बहुत था उसकी आँखों में,
वो प्यास बहुत थी उसके होंठों पे,
वो बच्चा था, पानी की तलाश में,
वो नदियों जैसा था, दरिया की तलाश में,
वो बेजान सा था, उस पानी की तलाश में।