हमारे भीतर वह अमृत है जो हमारे शरीर के गिर जाने बाद भी बच जाता है। उसकी खोज करनी चाहिए। वह अमृत जब हम इस शरीर में नहीं थे तब भी था और जब इस शरीर को छोड़ कर चले जाएंगे तब भी रहेगा। जो इस अमृत की खोज कर लेता है फिर उसका ना तो जन्म होता है और ना हीं मृत्यु होती है। इस अमृत के अनेकों नाम हैं। कोई उसे आत्मा कहता है , कोई उसे परमात्मा कहता है , कोई उसे मोक्ष कहता है , कोई उसे ब्रह्मचर्य कहता है , कोई उसे समाधि कहता है , कोई उसे निर्वाण कहता है , कोई उसे स्थितप्रज्ञ कहता है। लेकिन सभी एक हीं हैं।
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