उलझन में हूँ, कहाँ से आरम्भ करूँ और कहाँ उपसंहार करूँ इस उपोद्घात् का। फिर भी अपने दायित्व का निर्वहन तो करना ही है। यह तीन कवियों का दूसरा त्रयी काव्य-संकलन है। तीनों ही अवर्णनीय उत्साह से ओत-प्रोत हैं।
एक मैं हूँ व दो कवयित्रियाँ हैं अर्थात् वही "त्रिवेणी" वाले सहभागी हैं। हम इस अनुष्ठान को कहाँ तक ले जा पायेंगे अभी हमें ही ज्ञात नहीं है। प्रयास तो यही रहेगा कि यह कड़ी टूटने न पाये। तीनों ही काव्य-लेखन को समर्पित हैं। यद्यपि मेरी गति आँखों के विद्रोह के कारण बहुत मन्थर या कहूँ कूर्म-गति से चल रही है। फिर भी जब तक साँसें हैं मैं लिखना नहीं छोड़ूँगा। मैं लम्बी दौड़ का वाजि हूँ।