उपोद्घात्
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यह मेरा ३४वाँ एकल काव्य-संकलन है। लेखन गति बहुत धीमी है। आँखें साथ नहीं दे रहीं। फिर भी अपने स्वभावानुसार काव्य-सृजन कर ही रहा हूँ।
आगामी काव्य-संकलनों की मुख-पृष्ठ छवियाँ और शीर्षक सोच कर रखे हैं।
मेरी आँखे ठीक रहतीं तो कतिपय कला-कृतियाँ मैं भी बना डालता। किन्तु हमारी समस्त गतिविधियाँ विधि के आधीन हैं।
इस संकलन में १०० कविताएँ रखी हैं मैंने जो ०१-०५-२०२२ व १३-०५-२०२२ के मध्य जन्मीं हैं। मैं अपनी रचनाओं का सम्पादन न तो स्वयं करता हूँ न ही किसी से करवाता हूँ। अब भूमिकाएँ भी नहीं लिखवाता।