विनय जी अपने समकालीन कवियों से पचास वर्ष आगे हैं। यह बात आज और भी सार्थक है, मैं अकिंचन भ्राता गुरु के लिये जितना कहूं कम है l डॉ. वीणा के गुण क्या कहूं जैसी हैं हृदय से वैसी ही बाहर से भी हैं, इसी में सब निहित है l
यूँ ही ईश्वर ने त्रिवेणी का संगम नहीं कर दिया, बहुत कुछ सोचे बैठा है वह, मैं बारम्बार ईश्वर को धन्यवाद देती हूं कि आप दोनों ने मुझे इस योग्य समझा
वरना कौन किसी का होता है, तीनों परिवारों का सहयोग भी सराहनीय है l