भारतीय दर्शन और अध्यात्म में कर्म के महत्व और उसके फल के बारे में हमेशा से चर्चा की गई है। अब तो पाश्चात्य देशों में भी हमारा कर्म का सिद्धान्त ‘Karma Theory’ के रूप में अत्यन्त प्रचलित हो चुका है। लेकिन वास्तव में कर्म क्या है? क्या हम सब जो हर समय कर रहे हैं, वो कर्म है? हमारा व्यवसाय कर्म है? या किसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए किया गया कार्य कर्म है? वैसे तो कर्म के बारे में सबसे अच्छा और सम्पूर्ण ज्ञान श्रीमद्भगवत्गीता में उपलब्ध है लेकिन क्या उसे सरल भाषा में आम आदमी के लिए समझ पाना आसान है? गीता के अलावा भी अनेक पुराणों और शास्त्रों में विभिन्न कर्म और उनके फलों की व्याख्या की गई है।
क्या मनुष्य द्वारा किये गए कर्मों का फल तत्काल मिलता है या कई जन्मों तक यह चक्र चलता है? क्या अनेक प्रकार के रोग और व्याधियों का सम्बन्ध किसी प्रकार से हमारे कर्मों से हो सकता है? यूँ तो बहुत सी शारीरिक और मानसिक व्याधियों को समझने के लिए आजकल मनोवैज्ञानिक सिद्धान्त और व्याख्यायें हैं, परन्तु क्या भारतीय दर्शन और शास्त्रों में इसको समझाया गया है?
ऐसे ही कुछ प्रश्नों का उत्तर इस पुस्तक में सरल भाषा में लेखक ने देने का प्रयास किया हैं। भारतीय ज्ञान अध्यात्म और दर्शन को एक सरल भाषा में आम पाठक तक पहुँचाने का यह एक छोटा सा प्रयास है जो शायद कुछ बड़े प्रश्नों का जवाब ढूंढ़ने में मदद कर सके।
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