डा० जी० भक्त विरचित "काव्य कुसुम" वैशाली की गौरव गाथा, बिहार के धार्मिक, राजनैतिक और सांस्कृतिक इतिहास तथा भारत वर्ष के राष्ट्रीय गौरव एवं प्राकृतिक संसाधनों की जीवन्त भूमिका प्रस्तुत करती है। कवि की काव्य धर्मिता आज के युवा वर्ग में राष्ट्रीयता का युगबोध कराने साथ ही युगधर्म निभाने की प्रस्फुट अभ्यर्थना देश के प्रति समर्पित करती है।
बाइसवीं शदी की काव्य धारा में हिन्दी भाषा का प्रतिनिधित्त्व करती यह रचना अपना युगीन स्थान लेकर राष्ट्र भक्ति, देश प्रेम एवं प्राकृतिक वर्चस्व को उद्घाटित कर रही है।
प्रस्फुट भाषा में भावों का प्रवाह पाठकों के लिए आकषर्क के साथ ज्ञानों पहार का प्रत्यक्षीकरण सिद्ध हो रहा है। जिस काल खण्ड में देश शिक्षा की गुणवत्ता के क्षरण से चिन्तित उसके उत्थान के लिए प्रयत्नरत दृष्टिगत हो रहा है, वहाँ डा० जी० भक्त का "काव्य कुसुम" प्रभात वेला में सुरभित भक्ति भूषित एवं काव्य रस पूरित गौरवान्वित हो रही है।