विदेह, तिरहुत या फिर कहें मिथिला, भारत और नेपाल में फैले इस इलाके का आधुनिक इतिहास बहुत कम लिखा गया है. 20वी सदी के पूर्वार्ध में महामहोपाध्याय पंडित मुकुंद झा 'बख्शी' की यह किताब प्रकाशित हुई थी. 'मिथिलाभाषामय इतिहास' नाम से प्रसिद्ध इस किताब में मूल रूप से मिथिला के अंतिम राजवंश यानी खंडवला राजवंश का विस्तृत इतिहास लिखा गया है, लेकिन उससे पूर्व के दो राजवंशों कर्नाट और आइनिवार राजवंशों के संबंध में भी संक्षिप्त जानकारी दी गयी है. इस किताब का महत्व और प्रामाणिकता मिथिला के इतिहास पर लिखी गयी किसी अन्य किताबों से अधिक है. आधुनिक मिथिला के इतिहास पर अंग्रेजी में लिखी गयी तमाम पुस्तकों में इस किताब का जिक्र बार-बार आता हैं. यही कारण है कि मिथिला के अंतिम राजवंश को जानने-समझने के लिए यह पुस्तक सबसे प्रमाणिक पुस्तकों में से एक है. महामहोपाध्याय पंडित मुकुंद झा 'बख्शी' की यह किताब बाजार में काफी दिनों से अनुपलब्ध थी. कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति पंडित डॉ शशिनाथ झा ने इस एतिहासिक किताब का संपादन किया है. मिथिलाभाषामय इतिहास तिरहुत में उपयोग की जानेवाली तमाम भाषाओं में थी, जिसमें संस्कृत की अधिकता थी. इसमाद प्रकाशन के अनुरोध पर संपादक पंडित डॉ शशिनाथ झा ने ऐसे पाठकों के लिए जगह-जगह संस्कृत को अनुदित कर दिया है, जिससे संस्कृत नहीं समझनेवाले पाठक भी अब इसे आसानी से समझ सकते हैं. साथ ही फारसी व अन्य भाषाओं के शब्दों को भी अनुदित किया गया है. अब यह किताब पढ़ने और समझने में बेहद आसान हो चुकी है. मिथिला के इतिहास को जानने समझने के जिज्ञासु शोधार्थी पाठकों के लिए यह पुस्तक बेहद लाभकारी है.