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Subrat SaurabhAuthor of Kuch Woh PalAchievements
हिंदी साहित्य जगत में एक बिल्कुल भिन्न स्वर के कहानीकार हैं शुभम उपाध्याय। उनके इस कहानी संग्रह ‘मटन दिलरुबा’ में कुल 18 कहानियाँ हैं। पूरा संग्रह एक नयी तासीर और अनुभवबोध
हिंदी साहित्य जगत में एक बिल्कुल भिन्न स्वर के कहानीकार हैं शुभम उपाध्याय। उनके इस कहानी संग्रह ‘मटन दिलरुबा’ में कुल 18 कहानियाँ हैं। पूरा संग्रह एक नयी तासीर और अनुभवबोध से पाठकों को परिचित कराता है। इनकी कहानियों का सम्बन्ध भारतीय मुस्लिम जीवन से है। हिंदी कहानियों पर होनेवाली तमाम चर्चाओं में यह बात अक्सर उठती रही है कि हिंदी साहित्य में रोजमर्रा के मुस्लिम जीवन और किरदारों पर बहुत कम लिखा गया है। यह सच भी है। ऐसे में शुभम उपाध्याय ने जो कर दिखाया है, वह पूरे साहित्य जगत के लिए शुभ है।
दुनिया के एक अजूबे, वीरान और बर्फ़ीले द्वीप की यात्रा जहाँ लेखक वाइकिंगों और ‘गेम ऑफ़ थ्रोन्स’ के किरदारों से गुजरते हुए तांत्रिकों की दुनिया में पहुँच जाते हैं। एक ऐसी आधुन
दुनिया के एक अजूबे, वीरान और बर्फ़ीले द्वीप की यात्रा जहाँ लेखक वाइकिंगों और ‘गेम ऑफ़ थ्रोन्स’ के किरदारों से गुजरते हुए तांत्रिकों की दुनिया में पहुँच जाते हैं। एक ऐसी आधुनिक पश्चिमी भूमि जहाँ अंधविश्वास और भूत-प्रेत संस्कृति में गुंथी हुई है। भूकंप, ज्वालामुखी, तूफ़ान से घिरे इस विसंगतियों के द्वीप की हर डगर नए द्वार खोलती है। कठिनतम परिस्थियों में जीजीविषा की एक मिसाल। एकांत में एक अदृश्य भीड़ की तलाश। प्रकृति का विचित्र संतुलन। आइसलैंड की कहानी, एक क़िस्सागो की जुबानी।
मिथिला की चर्चा होते ही यहाँ के ज्ञान की चर्चा शुरू हो जाती है । बौद्धिक इतिहास पर सैन्य इतिहास हावी हो जाता है । जबकि मिथिला एक से बढ़कर एक युद्ध की साक्षी रही है । इसकी कोख से ए
मिथिला की चर्चा होते ही यहाँ के ज्ञान की चर्चा शुरू हो जाती है । बौद्धिक इतिहास पर सैन्य इतिहास हावी हो जाता है । जबकि मिथिला एक से बढ़कर एक युद्ध की साक्षी रही है । इसकी कोख से एक से एक वीर-योद्धाओं का जन्म हुआ, जो न केवल मिथिला की सीमा के रक्षार्थ लड़े, अपितु भारत के विभिन्न क्षेत्रों में जाकर अपने मित्र शासकों के लिये अपराजेय युद्ध किया । इन मैथिलों की शौर्य-गाथा की चर्चा शायद ही किसी इतिहासकार ने खुलकर की है। मिथिला में मैथिलों द्वारा लड़े गये युद्ध का मतलब कंदर्पीघाट की लड़ाई या बल्दिबाड़ी की लड़ाई तक सीमित है । मैथिल योद्धाओं को इतिहास लेखन में पूरी तरह हाशिये पर डाल दिया गया है, इनकी शौर्य गाथा समाज की यादों से विलुप्त होती जा रही है । इस पुस्तक उन्ही योद्धाओं के शौर्य गाथा को आप तक लाने का प्रयास है । विदेह से लेकर खण्डवला राजवंश तक के युद्ध इतिहास को इसमें दिखाने का प्रयास किया गया है । यह पुस्तक एक दस्तावेज ही नहीं बल्कि सुधी पाठकों के लिए उनके शक्तिशाली अतीत का एक सम्पूर्ण ज्ञानकोष भी साबित होगा ।
बिहार में राष्ट्रीय स्वयं सेवक के प्रथम प्रचारक और पांचजन्य अखबार के फाउंडिंग एडिटर श्री काशीनाथ मिश्र रचित नाटक ‘अयाची’ आधुनिक मैथिली साहित्य में अभिनेय नाटक की अनमोल कृ
बिहार में राष्ट्रीय स्वयं सेवक के प्रथम प्रचारक और पांचजन्य अखबार के फाउंडिंग एडिटर श्री काशीनाथ मिश्र रचित नाटक ‘अयाची’ आधुनिक मैथिली साहित्य में अभिनेय नाटक की अनमोल कृति है। ‘‘मनुष्य से याचना करना महापाप है। मनुष्य को केवल ईश्वर से याचना करने का अधिकार है’’ करीब 600 साल पहले मिथिला के इस दर्शन को अपने जीवन में उतारनेवाले महामहोपाध्याय श्री भवनाथ मिश्र प्रसिद्ध ‘अयाची’ के जीवन पर आधारित इस नाटक में मिथिला की ज्ञान परंपरा, सामाजिक इतिहास और भौतिक संतुष्टि के संस्कार को बेहतरीन तरीके से लिपिबद्ध किया गया है. इस नाटक का पहला संस्करण 1961 में प्रकाशित हुआ. दूसरा संस्करण आपके समक्ष है.
पाकिस्तान का इतिहास अक्सर विभाजन के इर्द-गिर्द भटक कर रह जाता है। जबकि यह एक देश के बनने की शुरुआत ही थी। 1947 के बाद पाकिस्तान का सफ़र कैसा रहा? किन-किन मील के पत्थरों से गुजरा? उन रा
पाकिस्तान का इतिहास अक्सर विभाजन के इर्द-गिर्द भटक कर रह जाता है। जबकि यह एक देश के बनने की शुरुआत ही थी। 1947 के बाद पाकिस्तान का सफ़र कैसा रहा? किन-किन मील के पत्थरों से गुजरा? उन रास्तों में क्या-क्या मुश्किलें आयी? भारत में पढ़ाए जा रहे इतिहास, और पाकिस्तान में पढ़ाए जा रहे इतिहास में जो स्वाभाविक अंतर है, उस से अलग एक तीसरा बिंदु भी ढूँढा जा सकता है। वह बिंदु, जहाँ से शायद वह चीजें भी नज़र आए, जो इन दोनों देशों के रिश्तों के सामने धुंधली पड़ जाती है।
दास्तान-ए-पाकिस्तान Bonzuri Prime की नयी पेशकश है, जो विभाजन के बाद के पाकिस्तान से गुजरती है।
Highlights
Partition विभाजन
Jinnah जिन्ना
Liyaqat लियाक़त
Ayub अयूब
1965 war 1965 युद्ध
1971 war 1971 युद्ध
Bangladesh बांग्लादेश
Bhutto भुट्टो
Zia ज़िया
Benazir बेनजीर
Musharraf मुशर्रफ़
Nawaz नवाज़
Kargil कारगिल
Imran इमरान
Laden लादेन
Taliban तालिबान
जयप्रकाश नारायण की कहानी आज़ादी से पूर्व और आज़ादी के बाद लगभग बराबर बँटी है।
जे पी को समझना देश को समझने के लिए एक आवश्यक कड़ी है। अगस्त क्रांति के नायक जिनका जीवन एक क्र
जयप्रकाश नारायण की कहानी आज़ादी से पूर्व और आज़ादी के बाद लगभग बराबर बँटी है।
जे पी को समझना देश को समझने के लिए एक आवश्यक कड़ी है। अगस्त क्रांति के नायक जिनका जीवन एक क्रांतिकारी मार्क्सवादी से गुजरते हुए गांधीवाद और समाजवाद के मध्य लौटता है, और पुनः एक लोकतांत्रिक क्रांति के बीज बोता है। एक ऐसे नायक की कथा जिनके स्वप्न और यथार्थ के मध्य एक द्वंद्व रहा, और कहीं ना कहीं यह देश भी उसी द्वंद्व से आज तक गुजर रहा है।
मुख्य अंश:
★ सिताब दीयारा, बलिया (Sitab Diara, Balia)
★ गांधी (Gandhi)
★ असहयोग आंदोलन (Non Cooperation Movement)
★ अमेरिका में जे पी (J P in America)
★ ग़दर (Ghadar)
★ कोंग्रेस (Congress)
★ भारत छोड़ो आंदोलन अगस्त क्रांति (Quit India Movement 1942 August Revolution)
★ भूदान (Bhoodan)
★ विनोबा भावे (Vinoba Bhave)
★ चम्बल के डकैत (Chambal Dacoits)
★ सम्पूर्ण क्रांति (Total Revolution)
★ इमर्जेंसी (Emergency)
★ इंदिरा गांधी (Indira Gandhi)
★ जनता पार्टी (Janta Party)
★ जन संघ (Jan Sangh)
रिनैशाँ अगर यूरोप में हुआ, तो भारत में यह एक सतत प्रक्रिया रही। यह मानना उचित नहीं कि भारत उस समय सो रहा था।
अंग्रेजों के आने के बाद कुछ स्थायी बदलाव ज़रूर हुए। एक तरफ़ वह भार
रिनैशाँ अगर यूरोप में हुआ, तो भारत में यह एक सतत प्रक्रिया रही। यह मानना उचित नहीं कि भारत उस समय सो रहा था।
अंग्रेजों के आने के बाद कुछ स्थायी बदलाव ज़रूर हुए। एक तरफ़ वह भारतीयों में हीन-भावना दे गए, वहीं दूसरी तरफ़ कुछ ऊँघती सभ्यता को जगाया। भारत को यह अहसास हुआ कि उनकी संस्कृति हज़ारों वर्ष पुरानी है, इसका यह अर्थ नहीं कि यह आधुनिक दुनिया से परे है। भारत के पास ऐसे कई सूत्र हैं, जिसने आधुनिक दुनिया के निर्माण में महती भूमिका निभाई है। चाहे कला हो, विज्ञान हो, धर्म हो, संगीत हो, शिक्षा हो, हर क्षेत्र में भारत ने एक सदी के दौरान ऊँचाइयाँ पायी।
अक्सर इसे बंगाल रिनैशाँ भी कहा जाता है, लेकिन यह सिर्फ़ बंगाल तक सीमित नहीं था। न ही यह एक धर्म या एक जाति तक सीमित था। यह अखिल भारतीय नवजागरण था।
Bonzuri Prime की नयी पेशकश इतिहास के इसी मील के पत्थर से गुजरती है।
मुख्य अंश Highlights
★ रॉयल एज़ीऐटिक सोसाइटी
★ मकाले
★ गेन्तु संहिता
★ ईसाई मिशनरी
★ विवेकानंद
★ दयानंद सरस्वती और आर्य समाज
★ राजा राम मोहन रॉय और ब्रह्म समाज
★ सती प्रथा
★ ईश्वर चंद्र विद्यासागर
★ माइकल मधुसूदन दत्त
★ रवींद्र नाथ टैगोर
★ जगदीश चंद्र बोस
★ नारायण गुरु
★ ज्योतिबा फुले
★ सर सय्यद अहमद खान
★ श्रीनिवास रामानुजन
★ बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय
★ मुस्लिम नवजागरण
★ डेरोज़ीयो
★ शिकागो भाषण
विदेह, तिरहुत या फिर कहें मिथिला, भारत और नेपाल में फैले इस इलाके का आधुनिक इतिहास बहुत कम लिखा गया है. 20वी सदी के पूर्वार्ध में महामहोपाध्याय पंडित मुकुंद झा 'बख्शी' की यह किताब प्
विदेह, तिरहुत या फिर कहें मिथिला, भारत और नेपाल में फैले इस इलाके का आधुनिक इतिहास बहुत कम लिखा गया है. 20वी सदी के पूर्वार्ध में महामहोपाध्याय पंडित मुकुंद झा 'बख्शी' की यह किताब प्रकाशित हुई थी. 'मिथिलाभाषामय इतिहास' नाम से प्रसिद्ध इस किताब में मूल रूप से मिथिला के अंतिम राजवंश यानी खंडवला राजवंश का विस्तृत इतिहास लिखा गया है, लेकिन उससे पूर्व के दो राजवंशों कर्नाट और आइनिवार राजवंशों के संबंध में भी संक्षिप्त जानकारी दी गयी है. इस किताब का महत्व और प्रामाणिकता मिथिला के इतिहास पर लिखी गयी किसी अन्य किताबों से अधिक है. आधुनिक मिथिला के इतिहास पर अंग्रेजी में लिखी गयी तमाम पुस्तकों में इस किताब का जिक्र बार-बार आता हैं. यही कारण है कि मिथिला के अंतिम राजवंश को जानने-समझने के लिए यह पुस्तक सबसे प्रमाणिक पुस्तकों में से एक है. महामहोपाध्याय पंडित मुकुंद झा 'बख्शी' की यह किताब बाजार में काफी दिनों से अनुपलब्ध थी. कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति पंडित डॉ शशिनाथ झा ने इस एतिहासिक किताब का संपादन किया है. मिथिलाभाषामय इतिहास तिरहुत में उपयोग की जानेवाली तमाम भाषाओं में थी, जिसमें संस्कृत की अधिकता थी. इसमाद प्रकाशन के अनुरोध पर संपादक पंडित डॉ शशिनाथ झा ने ऐसे पाठकों के लिए जगह-जगह संस्कृत को अनुदित कर दिया है, जिससे संस्कृत नहीं समझनेवाले पाठक भी अब इसे आसानी से समझ सकते हैं. साथ ही फारसी व अन्य भाषाओं के शब्दों को भी अनुदित किया गया है. अब यह किताब पढ़ने और समझने में बेहद आसान हो चुकी है. मिथिला के इतिहास को जानने समझने के जिज्ञासु शोधार्थी पाठकों के लिए यह पुस्तक बेहद लाभकारी है.
कृष्णकली तथा अन्य कहानियाँ राजशेखर बासु 'परशुराम' कृत विभिन्न कहानियों का संग्रह है जिसमें हास्य है तो समाज के विभिन्न वर्गों की सोच को आईना भी दिखाती है। बहुत ही सरल शब्दों में
कृष्णकली तथा अन्य कहानियाँ राजशेखर बासु 'परशुराम' कृत विभिन्न कहानियों का संग्रह है जिसमें हास्य है तो समाज के विभिन्न वर्गों की सोच को आईना भी दिखाती है। बहुत ही सरल शब्दों में लिखी गयी लघु कथाएँ ऐसी है जो क्लासिक्स होने के बावजूद आज के समाज को भी परिदर्शित करती प्रतीत होती है।
'कोसी के वट वृक्ष' उन बुजुर्गों की कहानी है जो 2008 में आयी कोसी के बाढ़ के बाद न केवल खुद तनकर खड़े हुए बल्कि दूसरों को भी संरक्षण भरी छाँव देते रहे हैं । यह एक उम्मीद भरी कहानी है, वह भ
'कोसी के वट वृक्ष' उन बुजुर्गों की कहानी है जो 2008 में आयी कोसी के बाढ़ के बाद न केवल खुद तनकर खड़े हुए बल्कि दूसरों को भी संरक्षण भरी छाँव देते रहे हैं । यह एक उम्मीद भरी कहानी है, वह भी ढलते सूरज की उम्मीद। वह बरगद जो छाया देता है, वह जो कभी बूढ़ा नहीं होता। यह किताब बुजुर्गों के लिए आपके मन में बसे कई धारणाओं को खंडित करने का काम करेगी । घुमंतू पत्रकार और लेखक पुष्यमित्र ने बड़े मनयोग से इसे लिखा है ।
आचार्य रमानाथ झा हेरिटेज सीरीज के तहत वर्ष 2019 में दरभंगा में बारह महीने में बारह स्मृति व्याख्यान का आयोजन किया गया। आचार्य रमानाथ झा मिथिला के आधुनिक विद्वानों में अपना विशिष्
आचार्य रमानाथ झा हेरिटेज सीरीज के तहत वर्ष 2019 में दरभंगा में बारह महीने में बारह स्मृति व्याख्यान का आयोजन किया गया। आचार्य रमानाथ झा मिथिला के आधुनिक विद्वानों में अपना विशिष्ट स्थान रखते हैं, जिन्होंने मैथिली भाषा और साहित्य एवं संस्कृति के संरक्षण-संवर्धन के लिए काफी महत्त्वपूर्ण कार्य किया। यह व्याख्यानमाला उन्हीं के और उन्हीं की तरह अन्य मैथिलों का स्मृति-तर्पण है। हर माह में एक विस्मृत मैथिल महापुरुष को स्मरण करते हुए उनके नाम से स्मृति-व्याख्यान का आयोजन किया गया। ये स्मरणीय व्यक्ति जीवन के विभिन्न क्षेत्रों से लिये गये एवं मिथिला में इनके अवदान को स्मरण करते हुए तर्पण किया गया। इन स्मरणीय व्यक्तियों का अवदान अपने-अपने क्षेत्र में अतुलनीय रहा है।
फिर भी समय की धारा में समाज ने इन्हें विस्मृति की खोह में धकेल दिया है। इसमाद फाउंडेशन ने इन विस्मृत पुरखों के नाम पर एक-एक स्मृति-व्याख्यान आयोजित कर इनके प्रति न केवल स्मृति-तर्पण किया है, अपितु मैथिल समाज की नयी पौध की स्मृति में इन्हें जीवंत करने का प्रयास किया है। इसमाद फाउंडेशन का यह प्रयास प्रशंसनीय है, जिसने विस्मृत महापुरुषों को हमारे मानस पटल पर पुनःस्थापित किया है।
आलेख सूची:
मैथिली भाषा के विकास में मुस्लिम समुदाय का योगदान
आजादी से पहले मिथिला में रेल का विकास
विदेह की राजधानी मिथिला नगर की खोज
आधुनिक चिकित्सा में संगीत
औपनिवेशिक प्राधिकार का आधार : चौकीदार
खंडवलाकालीन मिथिला के युद्ध और योद्धा
मिथिला क्षेत्र में आर्थिक विकास
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