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"It was a wonderful experience interacting with you and appreciate the way you have planned and executed the whole publication process within the agreed timelines.”
Subrat SaurabhAuthor of Kuch Woh Palहिंदी साहित्य जगत में एक बिल्कुल भिन्न स्वर के कहानीकार हैं शुभम उपाध्याय। उनके इस कहानी संग्रह ‘मटन दिलरुबा’ में कुल 18 कहानियाँ हैं। पूरा संग्रह एक नयी तासीर और अनुभवबोध से पाठकों को परिचित कराता है। इनकी कहानियों का सम्बन्ध भारतीय मुस्लिम जीवन से है। हिंदी कहानियों पर होनेवाली तमाम चर्चाओं में यह बात अक्सर उठती रही है कि हिंदी साहित्य में रोजमर्रा के मुस्लिम जीवन और किरदारों पर बहुत कम लिखा गया है। यह सच भी है। ऐसे में शुभम उपाध्याय ने जो कर दिखाया है, वह पूरे साहित्य जगत के लिए शुभ है।
शुभम उपाध्याय
18 सितंबर 1989 को सागर,म.प्र. में जन्मे शुभम उपाध्याय ने इंदौर से बी.ई.(आई.टी.) की डिग्री प्राप्त की. संस्था श्यामलम् द्वारा ‘सर्वश्रेष्ठ युवा सम्मान 2015’ से सम्मानित शुभम ने अब तक अपनी साहित्य यात्रा में नाट्य लेखन, आदिकाव्य और शायरी जैसी विधाओं में प्रमुखता से हस्तक्षेप किया है. इनके द्वारा लिखित व निर्देशित नाटकों में आधे- अधूरे (भाग -2), रंगधरम, लाखा- बंजारा और द लीजेंड ऑफ़ डॉ. हरिसिंह गौर काफ़ी चर्चित रहे हैं. आप विगत कई वर्षों से उभरते कलाकारों को निःशुल्क प्रशिक्षण एवं मंच उपलभ्ध करा रहे हैं. इसके अलावा कविता,आलेख,ग़ज़लें,पटकथा लेखन आदि में भी इनकी रूचि रही है। रोज़ी,कोबरा, यार,टेररिस्ट स्वर दो, कल क्या होगा न चिंता कर, आज ख़ुशी जो न मिलती, रिश्ते जैसी आपकी रचनाएँ उल्लेखित हैं। ग़ज़लों में दोआब, कितने मौके दें,सरहद, ख्वाहिशें,आदि प्रमुख हैं। तथागत नाट्य संस्था के निर्देशक, प्रशिक्षक,फिल्म एवं डॉक्यूमेंट्री निर्माता शुभम उपाध्याय की पुस्तक "मटन दिलरूबा" ,18 बेहतरीन कहानियों का एक लाजवाब संग्रह है, जो एक नयी तासीर और अनुभवबोध के विस्फोट के साथ साथ एक अलग क़िस्म के तिलिस्म से पाठकों का परिचय करवाता है।
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