यह कहानी है जंगल में लॉकडाऊन की।
कोरोना के आतंक ने समूचे विश्व को उल्टा - पुल्टा कर दिया। शहरों को स्थानबद्ध कर दिया। पैसा और भौतिक उन्नति के पीछे पागलों की तरह दौडने वाले गतिमान इन्सानों के पैरों में मानो बेडियाँ डाल कर उन्हें अवरुद्ध कर दिया। स्पर्श को इतनी अहमियत देने वाला इन्सान स्पर्श से कतराने लगा। उसका भरोसा उठ गया स्पर्श से! विचार - विमर्श होने लगा। लोग कहने लगे कि मनुष्य को प्रकृति की ओर लौट जाना चाहिए।
‘कोरोण्यकांड’ की कहानी आपको ऐसे लोगों से मिलाती है, जो प्रकृति का ही एक हिस्सा है सदियों से! वे प्रकृति की गोद में पले - बढे हैं। वृक्ष - लताएँ - पशु - पंछी उनकी संस्कृति का अविभाज्य अंग हैं। इन लोगों को भी लॉकडाऊन के दिन देखने पडे।
मराठी भाषा में लिखा गया शायद यह पहला उपन्यास है जो लॉकडाऊन की स्थिति और परिणामों के वास्तव रूप को उजागर करता है। अब हिन्दी अनुवाद के माध्यम से यह उपन्यासिका अपनी भाषिक सीमाओं से परे पहुँच कर एक नए रूप में आपके सामने प्रस्तुत है।