निःसंदेह जाति प्रथा हिन्दू धर्म के साथ ही भारतवर्ष के लगभग सभी धर्मों में व्याप्त एक सामाजिक कुरीति है। ये विडंबना ही है कि देश को आजाद हुए सात दशक से भी अधिक समय बीत जाने के बाद भी हम जाति प्रथा के चंगुल से मुक्त नहीं हो पाएं हैं।
भरात की आज़ादी से पहले तथा आज़ादी के बाद भी कई समाज सुधारकों ने इस जाति प्रथा के समूल विनाश हेतु अनेक कार्य किए जिसमें विश्व रत्न बाबा साहब डॉ॰ भीम राव अंबेडकर का योगदान हमेशा याद रखा जाएगा जिसके लिए उन्हें शोषित के भगवान के रूप में भी याद किया जाता है।
उन्हीं से प्रेरणा लेकर जब यह सोचा की किस प्रकार जातिवाद का विनाश किया जा सकता है तो यही विचार आया कि “जातिवाद पर करें प्रहार, शिक्षा, स्वस्थ्य और संस्कार” जिसमें प्रत्येक शब्द का अलग अलग प्रहार दिखाई देता है।
अगर सचमुच हम समानता का जातिविहीन समाज बनाना चाहते हैं तो एक नेशनल नैरेटिव के साथ सामाजिक न्याय का एक रैशनल प्रारूप बनाना होगा। इसके लिए विवाद कम विचार ज्यादा करने की जरूरत है।
तो आइये आज हम जातिवाद के मूल पर प्रहार करे और इससे पीड़ित समाज को इससे आज़ादी दिलाने हेतु प्रयास करें, तभी हमारा जीवन सफल माना जाएगा।
आशा ही नहीं मेरा पूरा विश्वास है की मेर यह प्रयास प्रबुद्ध पाठकगणों को रुचिकर लगेगा तथा पसंद आएगा। अगर मुझसे कहीं भूल हुई हो तो मुझे क्षमा करेंगे तथा मुझे अवगत कराएंगे जिससे उसे सुधार कर उन्नत रूप में प्रस्तुत किया जा सके।
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