"मैं मुन्ना हूँ" नायक के मानसिक विदलन और सृजनात्मक विकास व उपलब्धियों की कथा है। समकालीन सनसनियों में से एक से शुरू हुई यह कथा एक बालक, एक किशोर, एक युवक के उस आदिम अरण्य में ले जाती है जहाँ उसके भोगे गए यथार्थ का मनोविज्ञान है। इस उपन्यास में सबसे ज्वलंत मुद्दा जो उठाया गया है वह है 'बाल यौन शोषण'। उपन्यास के नायक मुन्ना की कहानी शुरू होती है बचपन में, जहाँ वो यौन शोषण की त्रासदी झेलता है। शुरू में उसका अबोध मन समझ नहीं पाता और कई बार विरोध करना चाहते हुए भी कर नहीं पाता अंतत: उसका विरोध फूट पड़ता है। वह अपना दुःख सिर्फ किन्नू से साझा करता है जो उसका काल्पनिक साथी है। मुन्ना का कृष्ण प्रेम व उसकी आस्था उसे अपने भैया व केशव से मिलवाती है जिससे वो अपना दुःख तकलीफ साझा करता है वे उसके मार्गदर्शक बनते हैं। इस कहानी में यौन शोषण की त्रासदी है, बचपन के किस्से है, प्रेम है, जवानी की शरारते हैं, गिरना है उठना है और फिर गिर के उठ कर संभल कर खड़े होने की कहानी है।
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