मालवा से प्राप्त शैव कला से संबंधित देव मूर्तियों एवं शिव लिंगों से स्पष्ट होता है कि इस क्षेत्र के शिल्पियों को प्रतिमा लक्षण संबंधी शास्त्रों का बहुत ज्ञान था। वे प्रतिमा निर्माण की प्रचलित परम्परा से पूर्णतः परिचित थे। शिव की विभिन्न मूर्तियों के गढ़ने में शास्त्र निर्दिष्ट परम्पराओं का पालन करते हुए अपनी मौलिक कल्पना शक्ति के आधार पर उनमें नवीनता लाने का प्रयास भी किया गया है।
शिल्प शास्त्रीय विधान की दृष्टि से गुप्त कालीन मूर्तियाँ भी उत्कृष्ट हैं परन्तु पूर्व मध्यकाल की जो प्रतिमाएं हैं उनमें गुर्जर प्रतिहार कला शैली, कलचुरि शैली तथा परमार कला शैली का अनुपम समन्वय देखने को मिलता है।
अधिकांश मंदिर नष्टप्राय अवस्था में हैं। इनके केवल भग्नावशेष प्राप्त होते हैं। अधिकांश मंदिरों के अवशेष गांव के बाहर प्राप्त हैं। प्रायः मंदिरों का निर्माण गाँव के बाहर शान्त स्थान में पहाड़ी या समतल भाग पर प्राप्त होता था, जो मंदिर की पवित्रता, सुन्दरदता एवं सत्यापत्यकार को आसानी से उपलब्ध होने वाले संसाधनों के कारण रहा होगा। प्राप्त मंदिरों से ज्ञात होता है कि मंदिर वास्तु की दृष्टि से भी मालवा के मन्दिरों में शास्त्रीय विधान का पालन किया गया है। मन्दिर शैलियों से निर्मित यहाँ सभी धर्मो के मंदिरों में शैव धर्म के मन्दिरांे की लोकप्रियता अधिक दिखाई पड़ती है।
मालवा की शैव मूर्तियों में लिंग मुख तथा प्रतिमाएं आभूषणों एवं अस्त्र शस्त्रों से सुसज्जित हैं।