सर्वप्रथम में सरस्वती मां को नमन करते हुए काव्य के इस समुंदर में गोता लगाने के लिए मेरे पूज्य पिता स्वर्गीय श्री नाथूराम बिलगैया का आशीष मिला था जिसका ईश्वर की कृपा से मेरे अंदर काव्य एवं साहित्य का विकास दिन प्रतिदिन बढ़ता गया मैंने भी अपनी जिज्ञासाओं को काव्य के माध्यम से पूर्ण किया क्योंकि काव्य का विषय बहुत ही गहरा और विस्तृत है।