मनस्मिता, जिसका अर्थ है मन ही मन मुस्कुराते रहने वाली। भाग्य उस पर मुस्कुराता रहा और वो अपने भाग्य पर। पर मनस्मिता जैसी धैर्यवान स्त्रियों के दम पर ही प्यार टिका है जिन्हें समाज की मर्यादाओं में अपने प्यार और अपनी भावनाओं को कुचल कर जीना पड़ता है। वैसे तो स्त्रियाँ प्यार संबंधी निर्णय में बेहद जिद्दी होतीं हैं पर जब वे समझौते कर लेती हैं तो फिर निभाती भी हैं। मनस्मिता, जिसका जीवन एक दीपक था जिसके उजाले में पहले तो एक नौजवान का बुझा हुआ दिल आलोकित रहा, और उसके बाद पति का दम्भ सिर पटकता रहा। वह उन दो ही पुरुषों को जानती थी- एक उसका प्यार रहा, एक उसका पति-परमेश्वर। उसने दोनों को अपने जीवन का अमृत बाँटा और दोनों के जीवन का विष पीती चली गई। वह किसी की होकर जीना चाहती थी और इस अरमान को उसने पूरा कर दिखाया। नारी की वेबसी, त्याग, और प्रणय से परिपूर्ण मार्मिक कथानक।