परछाई प्रकाशित होने वाली मेरी पहली कृति है। लिखने -पढ़ने में रुचि के चलते बहुत से विचार हमारे मस्तिष्क में आते रहते हैं। उन्हीं को विराम देने के परिणामस्वरूप रचनाएं स्वत: अपने स्वरूप में ढलने में लगती हैं।
परछाई कहानी एक ऐसे विचार को लेकर लिखी गयी है जिसमें बच्चों का होना हमारे धर्मग्रंथों और सामाजिक परिवेश में रहस्यमय परिधि के अंदर सहेज दिए जाते हैं । जिन्हें लेकर बालक मन अपने मन में बहुत सी धारणाएं बना लेता है और जब तर्क और विज्ञान की कसौटी पर ये खरे नहीं उतरते तो अविश्वास मन में जन्म लेता है। सच का सामना करने के उद्देश्य से यह कहानी रची गयी है। आज भी बहुत सी स्त्रियां इस विश्वास पर भरोसा करती हैं कि संतान साधना से प्राप्त की जा सकती है और जब साधना से प्राप्त नहीं होती तो अपने विश्वास की विजय पताका फहराने के लिए विभिन्न सरोकारों का सहारा लेकर उस विश्वास की जड़ों को मजबूत करने में अपनी ऊर्जा लगा देती हैं।
उम्मीद है जो पढ़ेंगे वे इस मंतव्य को अवश्य समझेंगे।