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parmar stapaty kala / परमार कालीन स्थापत्यकला परमार कालीन स्थापत्यकला

Author Name: Dr. Rajesh Kumar Meena | Format: Paperback | Genre : Educational & Professional | Other Details

परमार स्थापत्यकला

मालवा के इतिहास में परमार राजवंशों ने नवीं शताब्दी ई. से तेरहवीं शताब्दी ई. के प्रारंभ तक शासन किया। इनका मालवा के इतिहास में विशिष्ट स्थान है। अपने पाँच शताब्दियों के राजनीतिक इतिहास में इनका साम्राज्य-मालवा के पूर्व में भोपाल क्षेत्र के विदिशा व उदयपुर, पश्चिम क्षेत्र में हरसोल, मोडासा, महुड़ी तक दक्षिण में नर्मदा तथा होशंगाबाद क्षेत्र एवं उत्त्तर में कोटा क्षेत्र तक विस्तारित था। परमारों की कुछ शाखाएँ तो राजस्थान में अबुत मण्डल, जालोर एवं बागड तक में अपनी राज्य सत्त्ता स्थापित करने में सफल हो गई थी।

       स्थापत्य पर अनेक स्वतंत्र ग्रंथों की रचना हुई है तथा इसकी विभिन्न तकनीकों तथा इमारतों के विभिन्न रूपों के विवरण पौराणिक ग्रंथों से लेकर परवर्ती संस्कृत-प्राकृत ग्रंथों में तथा अन्य भारतीय भाषाओं के साहित्य में उपलब्ध है।

       प्रारम्भिक वास्तु हड़़प्पा सभ्यता के युग से लेकर तेरहवी सदी तक भारत में धार्मिक और लौकिक स्थापत्य के बहुसंख्यक रूप निर्मित हुए। इसके साथ ही सम्पूर्ण भारत असंख्य स्मारकों का एक विशाल संग्रहालय भी है। इससे स्पष्ट है कि विश्व की प्राचीन वास्तुकला में भारत का गौरवपूर्ण स्थान है। परमार वंश के राजा निःसन्देह महान निर्माणकर्ता थे। 

उन्होंने साहित्य एवं ललित कलाओं को तो प्रोत्साहन दिया ही इसके साथ-साथ स्थापत्य के क्षेत्र में महत्वूपर्ण निर्माण कराये हैं। इस काल के विभिन्न भग्नावशेष उनके योगदान की पुष्टि करते हैं।

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डाॅ.राजेश कुमार मीणा

नाम- डा. राजेश कुमार मीणा

पिता का नाम - रामप्रसाद मीणा   

जन्म दिनांक - 13.05.1984.

जन्म स्थान - महिदपुर रोड़

पढ़ाई - पी.एचडी (परमार कालीन शासकों के लोकहित कार्य एक ऐतिहासिक अध्ययन)

     - एम.सी.पी. 

डिपार्टमेन्ट नाम - प्राचीन भारतीय इतिहास संस्कृति एवं पुरातत्व अध्ययनशाला, विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन, मध्यप्रदेश।

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