प्रज्ञान, बाल साहित्यकार डॉ सत्यवान सौरभ जी की इक्यावन बाल कविताओं का सुन्दर संग्रह है। इन कविताओं में जीवन के विविध रंग देखने को मिलते हैं। इनमें प्रकृति का सौन्दर्य है तो समाज की कुरूपता भी है। जहाँ बचपन के आनन्द का सजीव चित्रण है वहीं आर्थिक विवशताओं के कारण काम के बोझ तले दबे बच्चों का मर्मस्पर्शी वर्णन है। बचपन जीवन का स्वर्णिम काल होता है लेकिन सभी बच्चों का बचपन एक - सा नहीं होता। कुछ बच्चों का बचपन काल के क्रूर हाथों द्वारा मसल दिया जाता है।इस कसक की झलक इस संग्रह में देखी जा सकती है।
प्रज्ञान बाल संग्रह की रचनाओं का प्रमुख स्वर मानवीय संवेदना और करुणा है। शांत नदी की तरह बहती ये कविताएँ पाठक के मन को शीतल भावों की लहरों से भिगो देती हैं। इन कविताओं में गम्भीरता एवं शालीनता है और तटबंधों का अनुशासन है। ये रचनाएँ एक हल्के - से घटनाक्रम को लेकर आगे बढ़ती हैं अतः इनमें कथातत्त्व का भी समावेश है जो जिज्ञासा से बालमन को अंत तक बाँधे रखता है। इन कविताओं में बच्चों ही नहीं, अभावों से जूझते समाज के श्रमिक वर्ग का भी चित्रण है। इन सबका उद्देश्य यह है कि कवि बच्चों की कोमल भावनाओं की रक्षा करते हुए उनमें दुखियों के प्रति संवेदना का भाव जगाना चाहता है।
छन्द में लिखी ये रचनाएँ गीत और कविता का मिलाजुला रूप है। इनमें लय और प्रवाह है जो इन कविताओं को प्रभावशाली बनाता है। भाषा बालमन के अनुरूप सरल, सरस और सहज बोधगम्य है। मुद्रण सुन्दर एवं त्रुटिरहित है। फैलते आकाश के साथ प्रज्ञान के मनमोहक चित्र से सजा आवरण अत्यन्त आकर्षक है। बालमन को लुभाने वाले मनोरंजक एवं संवेदनशील कविताओं से सजी पठनीय कृति 'प्रज्ञान' के सृजन के लिए डॉ सत्यवान सौरभ जी को हार्दिक बधाई।