प्रार्थना प्रेम और प्रेरणा कवि श्री धर्मवीर सिंह की कविताओं का सुंदर संकलन है। कवि ने गुरु चरणों की वंदना कर प्रेम और भक्ति में डूबी हुई रचनाओं से ईश्वर की आराधना की है। देश प्रेम का अलख जगाते हुए मानवीय मूल्यों की स्थापना की है।
मेरा जन्म जनपद बुलंदशहर,तहसील डिबाई, गांव कला पुठरी फुलवारी का नंगला में हुआ। जीवन के सफर में बाल्यावस्था से निकलकर किशोरावस्था में प्रवेश किया ही था कि मुझे जीवन यात्रा में एक ऐसा व्यक्ति टकरा गया जिसने इस जीवन यात्रा का रुख एक ऐसी दिशा में मोड़ दिया जिसे मानवता कहा जाता है, मैं जीवन पथ पर चल अवश्य रहा था परंतु मुझे जाना कहाँ है मेरी मंजिल कहाँ है यह मुझे मालूम नहीं था। परंतु इस जीवन की यात्रा में एक ऐसे जीते जागते महापुरुष ने मेरे जीवन में परिवर्तन लाया कि मैं कभी सोच भी नहीं सकता था कि मुझे एक ऐसे महापुरुष के दर्शन होंगे। मैं नानक, मीरा, कबीर जैसे महापुरुषों के बारे में सुनता अवश्य था लेकिन मेरे गुरु महाराज श्री प्रेम जी ने उसका साक्षात्कार करा दिया एक ऐसी चीज से नाता जोड़ दिया जो नाता रिश्तों का नहीं प्रेम का होता है। मुझे मेरी मानवता से परिचित कराया जब मैंने अपनी मानवता को पहचाना तो एक अलौकिक अनुभव हुआ,मेरे देखने का नजरिया ही बदल गया। गुरु महाराज जब सत्संग सुना कर चले गए उसके बाद ज्ञान की प्यास का अनुभव हुआ और मैंने सतगुरु की खोज आरंभ कर दी। खोजते खोजते आखिरकार मुझे उनका पता मिल गया। जब तक उनका पता नहीं मिला था उससे पहले किसी बहन जी के यहाँ गुरु महाराज जी की ऑडियो कैसेट चलती थी जिसकी आवाज मेरे हृदय को छूती थी और मैं आकर्षित होता था इस प्रकार आकर्षित होता था जैसे सांप बीन की आवाज को सुनकर आकर्षित होता है, चकोर चंद्रमा को देखकर आकर्षित होता है मैं उनको कभी अपनी छत पर बैठकर सुनता, कभी रोड पर बैठकर, कभी दीवार पर बैठकर... लेकिन मेरी उस घर में जाने की हिम्मत नहीं होती थी एक दिन मैं हिम्मत जुटाकर चला ही गया और वहाँ मुझको गुरु महाराज जी का पता मिल गया। लेकिन मेरे पास बस का किराया नहीं था बस के किराए की व्यवस्था करने के लिए मैं अपनी गाईड बेचने बुक डिपो पर गया परंतु वह भी नहीं बिकी अतः एक सज्जन अपने किराए से मुझे लेकर गए और मुझे गुरु दरबार से वह अनमोल उपहार प्राप्त हुआ। अपने गुरु महाराज की कृपा से सबसे पहले मैंने अपने आप को पहचाना, अपनी मानवता को पहचाना,फिर समाज व देश को पहचाना। एक दिन स्कूल में मेरे टीचर कुछ सवाल कर रहे थे तो मैंने उसका उत्तर दे दिया तो वह कहने लगे मैंने तो सोचा था कि धर्मवीर साधु संत में ही रहेगा लेकिन तू तो सामाजिक जिम्मेदारियां भी समझता है। मेरी क्लास के सभी बच्चे एवं मेरे टीचर बड़े आकर्षित रहते थे मुझे सुनने के लिए बच्चे झुंड लगाकर बैठ जाते थे। मुझे नाना प्रकार के नाम से पुकारते थे और मेरे टीचर भी मुझसे बहुत प्रभावित व आकर्षित रहते थे। लोग यह मानते थे कि यह गृहस्थ जीवन नहीं व्यतीत करेगा साधु संगत में ही अपना जीवन व्यतीत करेगा लेकिन गुरु महाराज जी की कृपा से सामाजिक एवं देश के प्रति सभी जिम्मेदारियों को निभाते हुए अपने गुरु महाराज एवं प्रभु का सदा वंदन करता हूँ जिससे मुझे सच्ची शांति का अनुभव होता है।