यह फर्श से अर्श तक का सफ़र एक ऐसे महामानव का सफ़र है जिसने एक अछूत जाति में जन्म लेकर शोषित के भगवान बनने तक का सफ़र किया। जब उसने इस धरा पर जन्म लिया तब उसके समाज की जिन्दगी कीड़ों मकोड़ों के जैसी ही थी। न तो उनका कोई सम्मान था और न हीं उनकी कोई औकात थी। जन्म से ही उन्होंने पग पग पर बाधाओं का सामना किया और भूखे प्यासे रहकर भी अपनी जीवन ज्योति को जलाए रखा।
जन्म के कुछ वर्ष पश्चात ही उनके पिता को जबरन सेना की नौकरी से हटा दिया गया, जहां वह मेंज़र सूवेदार थे। जब तक वह कुछ संभल पाते, तब मात्र छः वर्ष की आयु में ही उनकी माँ को काल ने उनसे छीन लिया। वह पड़कर उच्च शिक्षा प्राप्त करना चाहते थे किन्तु कोई भी प्राइमरी स्कूल उनको अपने स्कूल में दाखिला देने को तैयार नहीं था।