राजू बेचारा वस्तविक घटनाओं पर आधारित एक आत्म कथा है। पुस्तक आजीवन घटनाचक्र को इस प्रकार दर्शाती है कि बचपन से बुढ़ापे तक घटित सभी घटनाएं सम्मिलित हो जाती हैं। मुख्य पात्र राजू के जीवन से संबधित वास्तविक घटनाओं का उल्लेख संक्षिप्त रूप में किया गया है। हर घटना में राजू की मजबूरी व बेचारपन झलकता है और इसी कारण इस पुस्तक को राजू बेचारा नाम दिया गया।
राजू का जीवन संघर्षमय है। संघर्ष के साथ साथ परेशानइयाँ भी पीछा करती रहीं। राजू हर परेशानी का सामना करता है और आगे बढ़ता है। अनेक बाधाओं व कठिनायों के होते हुए भी जीवन में पीछे न देखना हर घटनाक्रम में उलेखित है। सुविधाओं का अभाव, आर्थिक तंगी, गाइडेंस की कमी का राजू जीवन भर सामना करता रहा। आगे बढ़ने का सदैव प्रयत्न करता रहा और बढ़ा भी। लेखक ने उन सभी घटनाओं को चरितार्थ करने के प्रयास किये हैं जो राजू के जीवन में वास्तविक रूप में घटित हुई हैं।
जीवन की प्रतियोगिताओं के सामना के साथ साथ राजू अपने उत्तरदावितों को भी भली भांति निभाता रहा। इस संग्रह के हर चैप्टर में राजू की मजबूरी और बेचारपन प्रदर्शित होता है। गांव में माँ के पास ही रह कर पढ़ना चाहता था पर शहर में पिता के पास पढ़ना पड़ा। छुट्टियों में गाँव जाना चाहा पर शहर में दुकान पर बैठना पड़ा। शादी के लिए मना किया पर करनी पड़ी। मास्टर नहीं बनना चाहा पर बनना पड़ा, आदि आदि।
अधिकांश संदर्भ बचपन से लेकर बुढ़ापे तक की घटनाओं का है। माता पिता, गुरुजनों, मित्रों, सहयोगियों, उच्च अधिकारियों व अधनिसस्त कर्मचारियों के सहयोग व योगदान की चर्चा भी पुस्तक में की गई है। जीवन में घटित वास्तविक घटनाओं के वर्णन से पुस्तक को रुचिकर बनाने के प्रयास किये गए हैं।