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Raju Bechara / राजू बेचारा An Autobiography

Author Name: Rajendra Prasad Dobhal | Format: Paperback | Genre : Biographies & Autobiographies | Other Details

राजू बेचारा वस्तविक घटनाओं पर आधारित एक  आत्म कथा है। पुस्तक आजीवन घटनाचक्र को इस प्रकार दर्शाती है कि बचपन से बुढ़ापे तक घटित सभी घटनाएं सम्मिलित हो जाती हैं। मुख्य पात्र राजू के जीवन से संबधित वास्तविक घटनाओं का उल्लेख संक्षिप्त रूप में किया गया है। हर घटना में राजू की मजबूरी व बेचारपन झलकता है और इसी कारण इस पुस्तक को राजू बेचारा नाम दिया गया।


राजू का जीवन संघर्षमय है। संघर्ष के साथ साथ परेशानइयाँ भी पीछा करती रहीं। राजू हर परेशानी का सामना करता है और आगे बढ़ता है। अनेक बाधाओं व कठिनायों  के होते हुए भी जीवन में पीछे न देखना हर घटनाक्रम में उलेखित है। सुविधाओं का अभाव, आर्थिक तंगी, गाइडेंस की कमी का राजू जीवन भर सामना करता रहा। आगे बढ़ने का  सदैव प्रयत्न करता रहा और बढ़ा भी। लेखक ने उन सभी घटनाओं को चरितार्थ करने के प्रयास किये हैं जो राजू के जीवन में वास्तविक रूप में घटित हुई हैं।


जीवन की प्रतियोगिताओं के सामना  के साथ साथ राजू अपने उत्तरदावितों को भी भली भांति निभाता रहा। इस संग्रह के हर चैप्टर में राजू की मजबूरी और  बेचारपन प्रदर्शित होता है। गांव में माँ के पास ही रह कर पढ़ना चाहता था पर शहर में पिता के पास पढ़ना पड़ा। छुट्टियों में गाँव जाना चाहा पर शहर में दुकान पर बैठना पड़ा। शादी के लिए मना किया पर करनी पड़ी। मास्टर नहीं बनना चाहा पर बनना पड़ा, आदि आदि। 

अधिकांश संदर्भ बचपन से लेकर बुढ़ापे तक की घटनाओं का है। माता पिता, गुरुजनों, मित्रों, सहयोगियों, उच्च अधिकारियों व अधनिसस्त कर्मचारियों के सहयोग व योगदान की चर्चा भी पुस्तक में की गई है। जीवन में घटित वास्तविक  घटनाओं के वर्णन से पुस्तक को रुचिकर बनाने के प्रयास किये गए हैं। 

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राजेंद्र प्रसाद डोभाल

राजेन्द्र प्रसाद डोभाल नवोदय विद्यालय समिति से सहायक आयुक्त के पद से सेवानिवृत्त हुए। वे नवोदय नेतृत्व संस्थान के निर्देशक भी रहे। उन्होंने अपना अध्यापन का कैरियर पब्लिक स्कूल से प्रारम्भ किया। इसके पश्चात सेंट्रल स्कूल और फिर नवोदय। अपने पैंतीस साल के सेवा काल में केवल रेसिडेंशियल सिस्टम में ही रहे। शिक्षा के क्षेत्र में टीचर, ट्रेनर और एडमिनिस्ट्रेटर के सभी  प्रकार के अनुभव प्राप्त किये।  जिस किसी भी पद पर कार्य किया खूब नाम कमाया और ईमानदारी व कर्तव्यनिष्ठा से अपने उत्तरदायित्व निभाये। लिखने पढ़ने का शौक प्रारम्भ से ही था। इनके लेख अनेक पत्रों औऱ पत्रिकाओं में छपे। 


श्री डोभाल की  निम्न दो पुस्तकें पहले भी छप चुकी हैं।   


A Guide to Effective Teaching.


         और


Principal with Principles।


दोनों ही पुस्तकें खूब पसंद की गई। अभी तक डोभाल जी इंग्लिश में ही लिखते रहे। हिंदी में यह उनका पहला प्रयास है। यह एक आत्म कथा है और राजू के जीवन में घटी सच्ची घटनाओं व अनुभवों को इसमें सम्मिलित किया गया है। आशा है कि पाठकों के हाथों में जब पुस्तक आएगी तो इसे भी सराहा जाएगा। 

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