इल्तुतमिश का बचपन सामान्य नहीं था, बल्कि घटनाओं के ऐसे नाटकीय मोड़ों से भरा था, जिन्होंने उसे एक समृद्ध परवरिश से उठाकर गुलामी की कठोर सच्चाईयों में धकेल दिया।
इल्तुतमिश का जन्म इलबरी तुर्की कबीले के एक समृद्ध परिवार में हुआ था। उसके पिता, इलाम खान, उस कबीले के एक प्रमुख नेता थे।
दुर्भाग्यवश, उसकी असाधारण योग्यताओं ने उसके सौतेले भाइयों में ईर्ष्या उत्पन्न कर दी। इसी ईर्ष्या के चलते, उन्होंने उसे धोखे से एक घोड़े की प्रदर्शनी में एक गुलाम व्यापारी को बेच दिया, जब वह सिर्फ एक बच्चा था।
इल्तुतमिश ने उज्जैन के महाकाल मंदिर को लूटा और नष्ट कर दिया। इसके बाद एक ब्राह्मण पुजारी ने उसे श्राप दिया। इसी श्राप के कारण इल्तुतमिश का जीवन, परिवार और साम्राज्य समाप्त हो गया। एक लड़का जिसका नाम समीर था, उसे बार-बार शिव के सपने आते थे और वह इस रहस्य को जानने के लिए एक डॉक्टर के पास पास्ट लाइफ थेरेपी के लिए गया। पास्ट लाइफ थेरेपी में यह पाया गया कि वह अपनी पिछली ज़िंदगी में इल्तुतमिश था। उसे यह सपना इस जीवन में उस पुजारी के श्राप के कारण आ रहा था। यही इल्तुतमिश का पुनर्जन्म था।
यह उसके पिछले जन्म का ‘ऋणानुबंध’ था। वह उज्जैन गया और इस ऋण से मुक्ति पाने के लिए वीर साधना की। वह उज्जैन सिंहस्थ कुंभ मेले में रुका। महाकाल की भस्म आरती की। उन लोगों से मिला जिन्हें इल्तुतमिश ने मारा था और उनसे क्षमा मांगी। इस्लाम को समझा और सनातन धर्म में विश्वास करने लगा। श्राप से मुक्त हो गया। आत्मा के करार के कारण अस्मिता से भेंट हुई और उसने विवाह किया।
डॉ. रवींद्र पास्टर
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