विश्व प्रसिद्ध और इक्कीसवीं सदी में सर्वाधिक लोकप्रिय एवं पढ़े जाने वाले पारसी कवि जलालुद्दीन रूमी की कविताएं उनके जीवन की तीन प्रमुख स्थितियों को भावनात्मक रूप से रेखांकित और उद्घाटित करती हैं। जिसके क्रम में रूमी का शम्स-ए-तबरेज़ी से मुलाकात, जुदाई और ईश्वर में एकात्म हो जाना शामिल है।
इस पुस्तक में रूमी के जीवन के उपरोक्त तीन महत्वपूर्ण परिस्थितियों से जुड़ी हुईं कविताओं को शामिल किया गया है। हालांकि इन कविताओं का रूमी के जीवन के क्रमानुसार क्रमिक रूप से क्रमबद्ध नहीं किया गया है। ऐसा इसलिए नहीं किया गया है क्योंकि कविताओं को एक पाठक किस मानसिक स्थिति से आत्मसात करता है यह महत्वपूर्ण होता है। इस स्थिति में यह मायने नहीं रखता है कि कविताओं का क्रम क्या है, बल्कि यह मायने रखता है कि कविताओं का भावनात्मक और व्यक्तिपरक प्रभाव कितना व्यापक और प्रभावशाली है।
इस पुस्तक में शामिल की गईं रूमी की कविताएं पाठक को एक ऐसे आलोक में लेकर जाएंगी जहां एक पाठक अपने भीतर छिपे हुए साहस, व्यक्तित्व, समग्रता, एकात्मकता, जीवन की जिजीविषा, उदासी का महत्व, प्रेम की सार्थकता, अनुग्रह और अनुकम्पा की मौलिकता और ईश्वर एवं स्वयं का एकात्म स्वरूप से रूबरू होगा। रूमी की यही समग्रता वर्तमान समय में भी इन्हें लोकप्रिय बनाये हुए है। जैसा कि रूमी स्वयं कहते भी हैं कि "तुम मात्र एक बूंद नहीं हो बल्कि एक बूंद में समग्र सागर हो।"
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